हिसार

कोरोना कहर — मजदूर पलायन

चूगा चुगने उड़ा था नीड़ से
भूखा ही वापस दौड़ चला हूं ।
बेहतर जीवन यापन वाले
सपने सारे छोड़ चला हूं ।।

भय व्याप्त है सिकुड़ी आंत है
डगर में बाधा बहुत खड़ी हैं ।
राह में प्रहरी प्रताड़ित करते
लाठियां भी बहुत पड़ीं हैं ।।
जीवन बचाने घर को भागा
दे जीवन को एक मोड़ चला हूं ।
बेहतर जीवन यापन वाले
सपने सारे छोड़ चला हूं ।।

माँ की ममता प्यार पिता का
विरह में पत्नी बुला रही है ।
मस्तिष्क में हैं गांव की गलियां
याद अपनों की सता रही है ।।
जो छोड़े थे पालन खातिर
उनको पाने दौड़ चला हूं ।
बेहतर जीवन यापन वाले
सपने सारे छोड़ चला हूं ।।

तेरी बस या मेरी बस की
कोविड कहर में राजनीति है ।
मुझ ‘बे’बस की आंखें तो
भीगे की ही भीगी हैं ।।
नंगे पाँव ही घर पहुंचूंगा
आशा व्यवस्था से छोड़ चला हूं ।
बेहतर जीवन यापन वाले
सपने सारे छोड़ चला हूं ।।

चूगा चुगने उड़ा था नीड़ से
भूखा ही वापस दौड़ चला हूं ।
बेहतर जीवन यापन वाले
सपने सारे छोड़ चला हूं ।।

धर्मपाल ढुल

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