हिसार

पर्यावरण के प्रहरी सन्त कबीर

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष

आज पर्यावरण दिवस और कबीर जयंती अनुपम संयोग है, देश मे हुए सभी महापुरुषों ने किसी न किसी रूप में पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया है जो इसकी महत्ता को दर्शाता है, देश मे अवतरित हुए श्री गुरु जम्भेश्वर जी ने पर्यावरण पर सर्वाधिक जोर दिया है। सन्त कबीर के अनुसार पर्यावरण प्रकृति का पालना है, जिसमें हरियाली किलकारियां करती हैं। हरियाली के महत्व को आज से 600 बरस पहले ही कबीर ने समझ लिया था। कबीर के व्यक्तित्व का एक पहलू कुरीतिभंजक और ढोंग-संहारक के रूप में रेखांकित करता है परन्तु कबीर के व्यक्तित्व का दूसरा पहलू भी है जो उन्हें पर्यावरणप्रेमी के रूप में स्थापित करता है। कबीर पर्यावरणप्रेमी तो थे ही, पर्यावरण के प्रहरी, प्रचारक और प्रसारक भी थे। तभी तो कबीर कहते हैं : 
 ‘डाली छेड़ूं न पत्ता छेड़ूं, न कोई जीव सताऊं। 
पात-पात में प्रभु बसत है, वाही को सीस नवाऊं॥’
ये काव्य-पंक्तियाँ पर्यावरण प्रेम का रेखांकन ही नहीं है, अपितु कबीर के पर्यावरण रक्षक रूप का प्रतिष्ठापन भी है। पेड़ के पत्ते में परमात्मा के बसने की बात भले ही कोई नास्तिक स्वीकार न करे, लेकिन पेड़-पत्ते सुरक्षित रहते हैं तो ऑक्सीजन सुरक्षित रहती है। इस बात को नास्तिक भी स्वीकारते
परमात्मा के बारे में नास्तिक का दृष्टिकोण भले ही नकारात्मक हो, लेकिन पेड़-पौधों, हरियाली, नदियों यानी पर्यावरण के प्रति तो नास्तिक का दृष्टिकोण भी सकारात्मक ही होता है और होना भी चाहिए, शर्त यह है कि वह बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन या सीमेंट-कांक्रीट से संबद्ध न हो। 
कबीर का पत्ते-पत्ते से प्रेम करना उन्हें पर्यावरण का पोस्टमेन सिद्ध कर रहा है। उक्त काव्य पंक्तियों से ज्ञात होता है कि कबीर पर्यावरण के पक्ष में स्वच्छता और सुरक्षा का झंडा बुलंद कर चुके थे।
कबीर की आँखों में इंसान और दिल में ईमान है। यह इंसान और ईमान ही उन्हें पर्यावरण की रक्षा के प्रति जागरूक रखता है। तभी तो कबीर कहते हैं : 
‘ रे भूले मन वृक्षों का मत लेरे। 
काटनिये से नहीं बैर है, सींचनिये से नहीं सर्वहरे॥ 
जो कोई वाको पत्थर मारे वाह को फल देरे॥ 
शीतघाम सब आपहिं आरे, औरों को सुख देरे।।

संकलनकर्ता- नरषोतम मेजर, अध्यक्ष अखिल भारतीय बिश्नोई युवा संगठन, हरियाणा

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Jeewan Aadhar Editor Desk