हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को मौजूदा समय में धान की फसल संबंधी दिए सुझाव
हिसार,
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों से धान की फसल को लेकर सुझाव देते हुए कहा है कि किसान फसल में पानी की कमी न रहने दें। सीधी बिजाई की गई धान की फसल को अब केवल गीला रखें व पानी केवल जमीन की सतह पर दरार आने से पहले ही दें। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सचेत करते हुए कहा कि देर से रोपाई की गई फसल में सिंचाई 5-6 सैं.मी. से अधिक गहरी नहीं करनी चाहिए।
कोरोना महामारी के चलते विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक लगातार किसानों से ऑनलाइन माध्यमों से या फिर फोन पर संपर्क बनाए हुए हैं और उन्हें समय-समय पर कृषि संबंधी जानकारी मुहैया करवा रहे हैं ताकि किसानों को किसी प्रकार की फसल संबंधी परेशानियों का सामना न करना पड़े। कृषि वैज्ञानिक खरपतवार नियंत्रक डॉ. सतबीर सिंह पूनिया ने किसानों से आग्रह किया कि फसल में चौड़ी पत्ती व डील्ला जाति के खरपतवारों की रोकथाम के लिए 2,4-डी इस्टर या अमाइन 400 ग्राम/50 ग्राम सनराइज/8 ग्राम एलमिक्स प्रति एकड़ का छिडक़ाव पानी निकाल कर करें। देर से पकने वाली किस्म जैसे पूसा 44 व संकर धान जो की बिजाई के बाद 130 से 145 दिन में पकती है, में किसान 130 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड तीन बार- बिजाई के समय, 3 सप्ताह बाद व 6 सप्ताह के बाद डालें। बौनी बासमती किस्में जैसे की पूसा 1509, पूसा 1121, पूसा 1401 व पूसा 1718 में केवल 80 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड ही काफी है।
तना छेदक कीड़े का बढ़ रहा है प्रकोप
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इन दिनों बासमती व अन्य किस्मों में तना छेदक कीड़े का काफी प्रकोप पाया जा रहा है। गोभ कि अवस्था से पहले आकर्मण होने पर पोधों की गोभ सुख जाती है जबकि गोभ या बालियां निकलने पर पूरी बाल सुख जाती है। इस कीड़े की समस्या होने पर मोनोक्रोटोफोस 36 एम. एल. या 1 लीटर क्लोरोपायरिफॉस 20 ई.सी. (डरमेट /लीथल/ फोरस) का रोपाई से 30, 50 या 70 दिन बाद 2 छिडक़ाव करे अथवा 7.5 किलो कारटॉप हाइड्रोक्लोराइड (पदान/सनवैक्स) 4 जी. या इतनी ही मात्रा मे फीप्रोनिल (रीजेंट/मोरटल) 0.3 जी. का 10 किलोग्राम सुखी बालू (रेत) मे मिलाकर पौधरोपण के 30 व 50 दिन बाद प्रति एकड़ फसल में डालें।
बीमारियों का नियंत्रण
उन्होंने बताया कि अगेती लगाई गई फसल में बदरंगे दाने व हल्दी रोग से बचाने के लिए 50 प्रतिशत बालियां निकलने पर 200 मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल (रिजल्ट) 20 ई. सी. दवा को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड छिडक़ाव करें। कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि अगर पत्तियों पर बदरा (ब्लास्ट) बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो किसान प्रति एकड़ 120 ग्राम ट्राइसाइक्लाजोल (बीम या सिविक) 75 डब्ल्यू पी या 200 ग्राम कार्बेन्डाजिम के घोल का छिडक़ाव करें। पानी की मात्रा 200 लीटर रखें। दूसरा छिडक़ाव 50 प्रतिशत बालियां निकलने पर करें। बालियां निकलते समय खेत में सूखा न लगने दें। बैक्टीरियल लीफ ब्लाईट या जीवाणुज पत्ती अंगमारी जिन खेतों में आ जाए उनमें पानी लगातार न खड़ा रहने दें और न ही उस खेत का पानी दूसरे खेतों में जाने दें। ऐसे खेतों में नाइट्रोजन खाद बाद में न डालें।