कइयों का प्रभाव नहीं तो कइयों को जनता नहीं दे रही तवज्जो, प्रवक्ताओं के भरोसे सक्रियता
राड़ा के लिए घातक हो सकती कुलदीप से दूरी, केवल कुलदीप के कार्यक्रमों में नजर आते पनिहार, चुनाव लड़ने वालों ने नहीं किया अपने स्तर पर कार्यक्रम
हिसार,(राजेश्वर बैनीवाल)। पिछले वर्ष इसी माह में हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए, अनेक नेता टिकटों के लिए लाईन में लगे थे, टिकट मिलने व चुनाव जीतने पर जनता की भलाई के बड़े—बड़े दावे कर रहे थे लेकिन चुनावी मौसम जाते ही ये नेता शांत हो गए। इनमें अधिकतर नौसिखिए कांग्रेसी हैं, जिनको केवल औपचारिकता के नाम पर टिकटें थमा दी गई और आज उनके हलकों में हालत है कि पार्टी का कोई नाम लेवा भी नजर नहीं आ रहा।
जी हां, जिले में कांग्रेस की हालत यही है। अधिकतर नौसिखिए कांग्रेसी शांत हो चुके है। केवल मात्र औपचारिकता के तौर पर पार्टी के कार्यक्रमों में हिस्सा लेना उनकी मजबूरी है, वरना अपने स्तर पर इन कांग्रेसियों ने एक वर्ष की अवधि में पार्टी के पक्ष में या सरकार के विरोध में कोई कार्यक्रम करने की जहमत नहीं उठाई। ऐसे में अब कांग्रेस को पुराने नेताओं की आस है लेकिन अधिकतर पुराने नेता पार्टी से दूर होते जा रहे हैं। जिले के उकलाना, हांसी, बरवाला व नारनौंद ऐसे हलके हैं, जहां से टिकट लाने वाले नौेसिखिए थे लेकिन उन्हें पार्टी ने टिकट थमा दी। चुनाव लड़ा, जमानत जब्त हुई और आज इनके हलकों में पार्टी की हालत दिन—प्रतिदिन खस्ता होती जा रही है। अपने स्तर पर कोई कार्यक्रम करने की हालत में ये नेता नहीं है, जिस कारण पार्टी का वर्कर पार्टी से दूर हो गया।
जिले में एकमात्र कांग्रेस विधायक कुलदीप बिश्नोई की इस समय 50—50 की भूमिका में है। उनकी सक्रियता से हर कोई वाकिफ है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री चौ. भजनलाल का गढ़ होने व पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में कुलदीप बिश्नोई की ऐतिहासिक जीत ने उनका प्रभाव भी साबित कर दिया लेकिन पार्टी हाईकमान द्वारा लगातार की जा रही उनकी अनदेखी से खुद कुलदीप भी जहां राजनीतिक क्षेत्रों में मायूस दिखाई देने लगे हैं, वहीं उनकी उपेक्षा गृह जिले में पार्टी के लिए भी घातक साबित हो रही है।
बरवाला से कांग्रेस टिकट चुनाव लड़ने वाले नेता भूपेन्द्र गंगवा नलवा से दावेदारी जता रहे थे, वे केवल जिंदल हाउस के सहारे नेता बने थे, उन्हें नलवा की बजाय बरवाला के मैदान में उतारा तो वे हलके को समझ पाते, इससे पहले ही चुनाव हो गए। इसी तरह नारनौंद से चुनाव लड़ने वाले बलजीत सिहाग को चुनाव के दौरान भी वर्कर ढूंढ रहे थे और आज भी ढूंढ रहे हैं। उक्त नेता को पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष रहे डा. अशोक तंवर से पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित भी किया था लेकिन तंवर के हटते ही उक्त नेता को निष्कासन का इनाम टिकट के रूप में मिला। चुनाव के समय नारनौंद सक्रियता दिखाने वाले उमेद लोहान व जस्सी पेटवाड़ भी इन दिनों चुप्पी साधे बैठे हैं। जस्सी पेटवाड़ तो इनेलो की टिकट पर चुनाव लड़े चुके हैं और चुनाव के बाद कांग्रेस में शामिल हुए थे लेकिन फिलहाल वे हलके में सक्रियता नहीं दिखा रहे हैं। यही हाल उमेद लोहान का है। इसी तरह हांसी से ओमप्रकाश पंघाल व उकलाना से टिकट लाने वाली बाला देवी को चुनाव से पहले भी कांग्रेसी ढूंढ रहे थे। पुराने कांग्रेसी उस घड़ी को कोस रहे हैं, जब उनकी उपेक्षा करके नयों को टिकटें थमा दी गई।
नलवा से चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस नेता रणधीर पनिहार को नौसिखिया तो नहीं कहा जा सकता लेकिन सक्रियता में वे भी अन्य कांग्रेसियों के बराबर ही नजर आ रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता कुलदीप बिश्नोई के कार्यक्रमों के अलावा उनकी सक्रियता कहीं दिखाई नहीं दे रही। इस समय विपक्ष पर सत्तापक्ष हावी हैे, विपक्ष के पास मुद्दों का भी अभाव नहीं है लेकिन सक्रिय नेताओं का अभाव अवश्य है, जिसके चलते सरकार चाहे कुछ भी करे, कोई विरोध करनेे वाला भी नहीं है। कांग्रेस के प्रदेश मुख्य प्रवक्ता बजरंग दास गर्ग व प्रदेश प्रवक्ता मुकेश सैनी एडवोकेट अपनी बयानबाजी से पूरे जिले, खासकर चुनाव लड़ने वाले कांग्रेसियों की निष्क्रियता को ढंकने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन उनकी बयानबाजी इस निष्क्रियता को दूर करने के लिए नाकाफी नजर आ रही है।
इसी तरह हिसार विधानसभा से चुनाव लड़े रामनिवास राड़ा के पास भी कार्यकर्ताओं के टीम नहीं है, वहीं वे अपना कोई नेता भी तय नहीं कर पा रहे हैं। कभी वे कुलदीप बिश्नोई के खास समर्थकों में थे और कुलदीप ने उन्हें हजकां सुप्रीमो रहते बरवाला से चुनाव भी लड़वाया था, जहां उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया था। आजकल रामनिवास राड़ा आका बदलकर प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा की हाजिरी लगा रहे हैं। हिसार से चुनाव लड़ते समय तो उन्होंने अपने पोस्टरों से कुलदीप बिश्नोई का फोटो भी हटा दिया था। उनके बारे में यह चर्चा चल पड़ी है कि वे किसी को अपना स्थाई आका नहीं बना पाए। गृह जिले में कुलदीप से दूरी बनाना रामनिवास राड़ा के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
जहां तक पुराने कांग्रेसियों का सवाल है, लंबे समय से पार्टी का संगठन न बनने व अपनी उपेक्षाा के कारण या तो वे पार्टी छोड़ चुके हैं या फिर निष्क्रिय हो गए हैं। कुल मिलाकर जिले में पार्टी की हालत दिन—प्रतिदिन पतली होती जा रही है। यदि शीघ्र ही संगठन न बना और पुराने कांग्रेसियों को न जोड़ा गया तो इस हालत में सुुधार की गुंजाइस भी नजर नहीं आ रही।
इस सबसे दूर, कांग्रेस पार्टी के प्रदेश मुख्य प्रवक्ता बजरंग दास गर्ग जिले के कांग्रेसियों को निष्क्रिय नहीं मान रहे। उनका कहना है कि पार्टी के हर कार्यक्रम में जिले के कांग्रेसी व सातों विधानसभाओं से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार लगातार पहुंचकर जनता की आवाज उठा रहे हैं। जनता के हर सुख—दुख में हर कांग्रेसी साथ है। साथ ही उन्होंने कहा कि पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा के कथनानुसार बरोदा उपचुनाव के बाद न केवल हिसार, बल्लि पूरे प्रदेशभर में पार्टी का संगठन भी नजर आएगा जिससे कांग्रेस नेताओ व कार्यकर्ताओं में और ज्यादा सक्रियता आाएगी।