हिसार

कर्मचारी एवं श्रम संगठनों को लेनी चाहिए एकता से चले किसान आंदोलन से सीख : सैनी

हौंसले एवं जज्बे से चला किसान आंदोलन सराहनीय, पहली बार देखने को मिली ऐसी एकता

निजीकरण की सबसे ज्यादा मार रोडवेज पर, संगठनों को विभाग हित में होना होगा एकमत

हिसार,
रोडवेज के पूर्व कर्मचारी नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता रमेश सैनी ने कृषि से संबंधित तीन कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के हौंसले एवं जज्बे से परिपूर्ण आंदोलन को सराहनीय बताया है। उन्होंने कहा कि आम जनता का कर्तव्य है कि वह किसानों का साथ दें और केन्द्र सरकार को मुंहतोड़ जवाब दें। साथ ही उन्होंने कहा कि कर्मचारी एवं मजदूर संगठनों, खासकर हरियाणा रोडवेज की यूनियनों को भी किसान आंदोलन से सीख लेनी चाहिए।
एक बयान में रमेश सैनी ने कहा कि कृषि से संबंधित तीन काले कानूनों के खिलाफ किसानों द्वारा 26 नवम्बर से देश की राजधानी दिल्ली को घेरने का आह्वान किया था। दूसरी तरफ श्रम कानूनों एवं तमाम लाभदायक एवं जन सेवाओं वाले सरकारी विभागों के निजीकरण के खिलाफ इसी दिन 26 नवम्बर को कर्मचारी—मजदूर संगठनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान था परंतु जिस प्रकार देशभर के छोटे—बड़े 400 से ज्यादा किसानों के संगठनों द्वारा एक मंच पर आने तथा दिल्ली की चारों ओर की सीमाओं पर देश के अलग—अलग राज्यों के किसानों पर पुलिस—फोर्स द्वारा सर्दी में ठंडे पानी की तेज बौछारें, आंसू गैस के गोले, लाठीचार्ज, झूठे केस, जगह—जगह सीमेंटिड बेरिकेट्स, सड़कों पर गहरे गड्डे, मिट्टी से भरे ट्रकों से रास्ते अवरूद्ध करने सहित तमाम प्रकार की दमनकारी नीतियों एवं बाधाओं को कुचलते हुए किसान जब दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे, जो आज भी दिल्ली को चारों ओर से घेरे हुए हैं। किसानों की ऐसी एकता स्वतंत्र भारत में पहली बार देखने को मिली है। ऐसी एकता, हौंसला एवं जज्बा 26 नवम्बर की राष्ट्रव्यापी हड़ताल की तैयारियों के दौरान कर्मचारियों में दिखाई नहीं दिया, जो चिंता का विषय है। कर्मचारी एवं अन्य संगठनों को समझना होगा कि किसानों की तरह ही एकता प्रदर्शित करना आज समय की मांग है नहीं तो केन्द्र व विभिन्न प्रदेशों की सरकारें धीरे—धीरे करके सभी सरकारी विभागों का निजीकरण कर देगी।
रमेश सैनी ने कहा कि इस हड़ताल में हरियाणा रोडवेज की चार यूनियनों की तथाकथित तालमेल कमेटी भी शामिल थी, जो ऐन वक्त पर 24 घंटे पहले हड़ताल से पीछे हट गई और केवल दो घंटे के प्रदर्शन करने पर आ गई जबकि निजीकरण का सबसे ज्यादा प्रभाव परिवहन विभाग पर पड़ रहा है। पुरानी बसें कंडम हो रही है, नई बसें खरीदी नहीं जा रही, स्टेज कैरिज के नाम पर 850 से बढ़कर 1500 बसें व किलोमीटर स्कीम के नाम पर 700 प्राइवेट बसें शामिल हो चुकी है। इसी प्रकार परिवहन विभाग का 50 प्रतिशत निजीकरण हो चुका है जबकि सरकार कहती है कि परिवहन विभाग का निजीकरण नहीं होगा।
रमेश सैनी ने कहा कि वर्तमान हालातों को देखते हुए कृषि कानूनों, श्रम कानूनों, सरकारी संस्थाओं के निजीकरण, बेतहाशा बढ़ती महंगाई व भयंकर बेरोजगारी बढ़ाने वाली भाजपा केन्द्र व राज्य सरकारों के ख्रिलाफ किसानों, मजदूरों, कर्मचारियों, युवाओं एवं तमाम संगठनों को अपने भेदभाव से उपर उठकर एक मंच पर आने की जरूरत बन गई है।

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