हिसार

किसान आंदोलन में देखने को मिला अनुशासन एक मिसाल : रमेश सैनी

किसानों को अन्नदाता मानने के बावजूद उनकी बात को अनसुना कर रही केन्द्र सरकार

अडानी, अंबानी व रामदेव के उत्पादों का बहिष्कार जरूरी लेकिन इन्हें जबरदस्ती बंद करवाना किसान आंदोलन की परिपाटी के विपरीत

हिसार,
रोडवेज के पूर्व कर्मचारी नेता रमेश सैनी ने देशभर में चल रहे किसान आंदोलन के प्रति केन्द्र सरकार की चुप्पी व टाल-मटोल वाले रवैये पर नाखुशी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि एक तरफ तो किसान को अन्नदाता कहा जाता है लेकिन दूसरी तरफ अन्नदाता की बात न मानकर उसे अपमानित किया जा रहा है। यह पहला मौका है जब यह आंदोलन इतने बड़े स्तर पर फैला है और सरकार उसको नजरअंदाज कर रही है।
एक बयान में रमेश सैनी ने कहा कि दिल्ली में बने किसान आंदोलन के बैनर तले अब यह आंदोलन पूरे देश में फैल चुका है और जनता के हर वर्ग का आंदोलन को समर्थन मिल रहा है। सबसे बड़ी बात है कि आंदोलन के 44 दिन के दौरान बहुत बढिय़ा अनुशासन व शांति देखने को मिली जो प्रंशसनीय है। उन्होंने कहा कि अब यह आंदोलन केवल किसान तक सीमित न रहकर आम जनता का आंदोलन बन गया है और जनता को समझना होगा कि अडानी, अंबानी की कंपनियों के उत्पादों का बहिष्कार किया जाए और सत्ता में बैठे सांसदों से पूछा जाए कि वे जनता के साथ है या अडानी, अंबानी के साथ। जब तक आंख मूंदकर ऐसे जनविरोधी बिलों का समर्थन करने वाले सांसदों से जवाबतलबी नहीं होगी, तब तक भविष्य में भी इस तरह के कृषि विरोधी, कर्मचारी व मजदूर विरोधी व जनविरोधी बिल आते रहेंगे और ये नेता जनता के सामने घडिय़ाली आंसू बहाते रहेंगे। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह किसानों व आम जनता के धैर्य की परीक्षा न लें और समय रहते किसानों की बात मानकर अन्नदाता का सम्मान करें।
रमेश सैनी ने कहा कि जनता खासकर किसानों के खिलाफ किसी भी तरह की बयानबाजी गलत है और इस आंदोलन के दौरान सत्तापक्ष से जुड़े नेताओं के साथ-साथ अडानी, अंबानी ग्रुप व योग गुरू स्वामी रामदेव ने भी अपनी बातों से किसानों को अपमानित किया है। ऐसे में जनता को अब समझना होगा कि केवल अडानी, अंबानी व स्वामी रामदेव जो आज कार्पोरेट घरानों के शामिल हो चुके हैं, उनके उत्पादों का भी बहिष्कार किया जाए। इसके साथ ही उन्होंने हिसार में कुछ संगठनों द्वारा रिलायंस व पतंजलि स्टोर जबरदस्ती बंद करवाए जाने को गलत बताते हुए कहा कि किसान संगठनों ने किसी भी संस्थान को जबरदस्ती बंद न करवाने की अपील की हुई है। ऐसे में युवाओं व संगठनों द्वारा किसानों के समर्थन में आंदोलन चलाना व तन, मन धन से सहयोग देना सराहनीय है लेकिन किसी भी संस्थान को जबरदस्ती बंद करवाकर किसान आंदोलन की परिपाटी से दूर होने का प्रयास न करें ताकि किसान विरोधी लोग इस पर अपनी रोटियां न सेंक सकें।

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