हिसार

मुनि विजय कुमार ने तेरापंथ भवन में ‘दुख को सुख में बदलने की कला’ विषय पर दिए प्रवचन

सुख और दुख जीवन रुपी नदी के दो किनारे : मुनि विजय कुमार

19 फरवरी को तेरापंथ भवन कटला में मनाया जाएगा ‘मर्यादा महोत्सव’

हिसार,
हिसार कटला रामलीला स्थित तेरापंथ भवन के अहिंसा सभागार में ‘दुख को सुख में बदलने की कला’ विषय पर बोलते हुए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासन श्री मुनि विजय कुमार ने उपस्थित श्रावक श्राविकाओं से कहा कि मनुष्य का जीवन बहती नदी के समान है। सुख और दुख उसके दो किनारे हैं। जब तक इस नदी का अस्तित्व रहेगा तब तक वह इन दो किनारों के बीच बहती रहेगी। मनुष्य का स्वभाव है, वह सुख चाहता है, दुख से बचना चाहता है, किंतु उसकी यह सोच आकाश में खिले फूल की तरह होती है। हां, वह दुख को सुख में बदलने की प्रक्रिया सीख जाए तो दुख से सहज छुटकारा मिल सकता है। ज्ञानी, संतों, भगवंतों ने अपनी वाणी में दुख मुक्ति के उपायों की चर्चा की है।
उन्होंने बताया कि दुख और सुख का संबंध व्यक्ति के संवेदन से है। एक ही परिस्थिति किसी के लिए कष्टकारक और असह्य हो जाती है, वहीं सकारात्मक चिंतन वाले व्यक्ति के लिए अति सामान्य बनकर रह जाती है। संत अलहीरी के जीवन का एक प्रसंग है। वे अपने भक्तों के साथ कहीं जा रहे थे। किसी ने असावधानीवश उन पर राख डाल दी। साथ चलने वाले भक्तों को गुस्सा आना स्वाभाविक था। वे घर की तरफ दौड़े। संत के चेहरे पर मुस्कान थी, उन्होंने भक्तों को रोककर कहा-अरे, तुम झगड़ा करने क्यों जा रहे हो? राख ही तो गिरी है, मेरे पर अंगारे तो नहीं गिरे। भक्तों के कदम वहीं रुक गए। किसी कवि ने सुंदर लिखा है कि ‘सुख-दुख इण संसार में, हर कोई के होय, ज्ञानी भुगते ज्ञान स्यूं, मूरख भोगे रोय।’ अज्ञानी व्यक्ति हाय-त्राय करके जिस कष्ट को भोगता है, ज्ञानी उसी को यह सोचकर कि यह कष्ट स्थायी नहीं है, चला जाएगा, यह मेरी परीक्षा लेने आया है, सुख में बदल लेता है। एक पत्रिका में पढ़ा था कि इजरायल में ऐसे प्लांट लगे हैं जो समुद्र के खारे पानी को भी मीठा बना देते हैं। अगर प्रक्रिया के द्वारा खारे पानी को पीने लायक बनाया जा सकता है तो दुख को सुख में क्यों नहीं बदला जा सकता है। रोते हुए जीना व्यक्ति की नियति नहीं है, यह उसका अज्ञान है। अज्ञान जैसे-जैसे टूटता है, दुख से रिश्ता भी वैसे-वैसे छूटता जाता है। कुंती ने श्रीकृष्ण से कहा-प्रभो! मेरे जीवन में कष्ट आते रहें ताकि आपके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता रहे। महासती कुंती की यह सोच हर व्यक्ति में जाग जाए तो वह बहुत सारे दुखों से स्वयं को मुक्त कर सकता है। व्यक्ति दुख से कभी घबराए नहीं, अपनी सोच को सकारात्मक रखे और अपने साहस का दीप कभी बुझने न दे।
तेरापंथ सभा के अध्यक्ष संजय जैन ने आगामी 19 फरवरी को आयोजित ‘मर्यादा महोत्सव’ के बारे में सभी को बताया। शासन श्री मुनि विजय कुमार व मुनिश्री जम्बू कुमार की सन्निधि में प्रात: 9 बजे से 11 बजे तक यह कार्यक्रम चलेगा। लॉकडाऊन के बाद तेरापंथ सभा के निर्देशन में बच्चों के लिए पुन: ज्ञानशाला प्रारंभ हुई जिसका प्रभारी सिद्धी जैन व गरिमा जैन को बनाया गया। मुनिश्री ने ज्ञानशाला के लिए सभी को प्रेरणा की कि माता-पिता अपने बच्चों को इस उपक्रम से अवश्य जोड़ें। कार्यक्रम में श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा अध्यक्ष संजय जैन, उपाध्यक्ष के.के. गुप्ता, परामर्शक नंद कुमार जैन, तेरापंथ सभा मंत्री गौरव जैन, अटल बिहारी जैन, शुगनचंद जैन, राकेश जैन, राजकुमार जैन, सुधा जैन, शशि जैन, सुमन जैन, विजया जैन आदि उपस्थित थे।

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