आदमपुर,
आदमपुर की अनाज मंडी के आढ़ती आजकल एक भय के महौल में जी रहे हैं। भय इस बात का है कि पता नहीं कौन-सा व्यापारी कब उनका पैसा मारकर यहां से फरार हो जाएं। पिछले कुछ सालों में आदमपुर की अनाज मंडी को नजर लगी हुई है। हर साल एक से दो व्यापारी आढ़तियों का मोटा पैसा मारकर यहां जा रहा है। पहले व्यापारी फेल होने की स्थिती में 25 पैसे, 40 पैसे और 50 पैसे के हिसाब से आढ़तियों का पैसा पंचायत में बैठकर चुकाते थे। इसके लिए बाकायदा उन्हें समय भी दिया जाता था। लेकिन अब पिछले कुछ सालों से अधिकतर व्यापारी फेल होने के कारण से नहीं भाग रहे बल्कि आढ़तियों व किसानों के पैसे मारने के चक्कर में जा रहे हैं।
आदमपुर के इतिहास पर नजर डाली जाएं तो आदमपुर में पहले चौ. पोकरमल बैनिवाल व्यापारियों के फेल होने पर पंचायत करके आढ़तियों के पैसे दिलवाते थे। इस दौरान व्यापारी की हलात के अनुसार फैंसला लिया जाता था और व्यापारी को फिर से कामयाब करने की तरकीब पर विचार किया जाता था। चौ. पोकरमल का मानना था कि एक व्यापारी फेल होता है तो वह मंडी को कई साल पीछे धकेल देता है। ऐसे में व्यापारी को उभारने में पूरे समाज को एकजुट होकर उसका साथ देना चाहिए। वे आढ़तियों और किसानों को पैसों की गारंटी देते हुए व्यापारी को कामयाब करने के बारे में अग्रसर रहते थे।
वहीं व्यापार मंडल के प्रधान बने नौरंगराय बंसल ने व्यापारी के फेल हो जाने पर 50 पैसे देकर साहुकार बनने की परम्परा की नींव रखी। उनका कहना था कि व्यापार में घाटा हो जाने पर बाजार के आधे पैसे देकर व्यापारी फिर से अपना व्यापार स्टैंड करें। उन्होंने इस दौरान ब्याज देने पर भी छूट देने का प्रावधान पंचायतों में रखा। उनके इस फैंसले पर व्यापारियों, आढ़तियों व किसानों का भी पूरा समर्थन मिला। उनके बाद चौ. भजनलाल की दुकान पर मुनिम रहे हरिसिंह राव ने स्थिती के अनुसार 25 पैसे, 40 पैसे और 50 पैसे का फार्मुला इजाद किया। इस पर आमजन सहमत दिखाई देते थे।
लेकिन पिछले कुछ सालों से आदमपुर में ठोस पंचायत का प्रचलन ही बंद हो गया। इसके चलते व्यापारी लगातार आढ़तियों के पैसे मारकर भाग रहा है। हद तो इस बात की हो गई कि आदमपुर व्यापार मंडल के खजांची पद पर आसीन पदाधिकारी ही किसान व आढ़तियों का पैसा लेकर पिछले दिनों यहां से चला गया। व्यापारियों के इस प्रकार से भागने का असर अब आदमपुर के व्यापार पर भी दिखाई देने लगा है। आढ़ती लगातार अपना काम समेटने में लगे हुए है।
आढ़तियों का काम अब बैंक लिमिट के कारण ही चल रहा है। अगर आदमपुर में बैंकों ने लिमिट बंद कर दी तो यहां का व्यापार पूरी तरह से लड़खड़ा जाएगा। बता दें, आदमपुर मंडी का पूरा काम आनाज मंडी पर निर्भर करता है। आदमपुर में जितने भी उद्योग है वे अनाज पर ही आधारित है। ऐसे में जब भी आदमपुर की अनाज मंडी से कोई व्यापारी भागता है तो उसका असर पूरे आदमपुर के व्यापार जगत पर पड़ता है।
आढ़तियों का कहना है कि अब आदमपुर में पहले वाली बात नहीं रही। पहले व्यापारी घाटा लगने की स्थिती में ही आढ़तियों व किसानों का पैसा मना करते थे या भागते थे। लेकिन अब व्यापारी नीयत में खोट होने के चलते पैसा मारने लगे हैं। व्यापारी आगे कामधंधा सेट करके आदमपुर के किसानों व आढ़तियों का पैसा मारकर भाग रहे हैं। इन लोगों को अब लोक-लज्जा नहीं रही है। ना ही अब आदमपुर में ऐसे पंचायती लोग बचे है जिनकी शर्म-हया मानकर लोग एक-दूसरे के पैसे नहीं मारते थे। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आदमपुर का व्यापार जहां पहले विश्वास पर टिका था वो अब पूरी तरह से हिल चुका है। ऐसे में अब आदमपुर के व्यापार को एक सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता आ पड़ी है।