आदमपुर,
सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने व महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए आरक्षण दिया था। आरक्षण मिलने के बाद से महिलाओं की स्थानीय शासन में भागीदारी बढ़ी है लेकिन आदमपुर ब्लॉक के अधिकतर ग्राम पंचायतों में मुख्य रूप से सरपंच पति, पिता या उनके ससुर ही कामकाज की बागडोर संभाले हुए हैं। प्रदेश सरकार द्वारा नारी शक्ति के साथ होता हरियाणा का विकास के दावे किये जाते है लेकिन आदमपुर खंड में इसका परिणाम दावे के बिल्कुल विपरीत दिखाई देता है। आदमपुर खंड की कुल 26 ग्राम पंचायतों में से 12 ग्राम पंचायतों में महिला सरपंच है लेकिन अधिकतर ग्राम पंचायत में जहां महिला सरपंच हैं वहां महिला सरपंच का नहीं बल्कि सरपंच पति, पिता या फिर ससुर का राज चलता है। पति, पिता या ससुर पंचायत के हर काम में शामिल रहते है। आदमपुर खंड के कई ग्राम पंचायतों में सरपंच पति की व्यवस्था से ग्रामीण भी नाराज हैं।
मनरेगा, गौठान निर्माण, नाली निर्माण सहित अनेक अन्य विकास कार्यों में महिला सरपंच की जगह उनके प्रतिनिधि काम करवाते हैं। कोई ग्रामीण जब अपने काम से पंचायत पहुंचते हैं तो वहां भी सरपंच के बजाय सरपंच पति या पिता मिलता है। अब हद तो गांव किशनगढ़ और खारा बरवाला में सरपंच निवास को दिखाने वाले साइन बोर्ड पर भी महिला सरपंच का नाम गायब है। किशनगढ़ में लगे साइन बोर्ड में सरंपच निवास को दर्शाने के लिए लगे साइन बोर्ड पर महिला सरपंच की जगह उनके ससुर का नाम अंकित है। वहीं खारा बरवाला में सरपंच निवास को दर्शाने वाले साइन बोर्ड पर महिला सरपंच के चाचा ससुर का नाम अंकित है। दोनों बोर्ड पर महिला सरपंच का नाम तक नहीं है।
आदमपुर खंड के अधिकतर ग्राम पंचायतों में जब ग्रामीणों से पूछा गया कि उनका सरपंच कौन है तो ग्रामीणों ने महिला सरपंच के बजाय उनके पति या पिता का नाम लिया। ग्राम पंचायतों में पति और पिता का पद महिला सरपंच से अधिक प्रभावी है। महिला सरपंचों की मदद की आड़ में सरपंच पति और पिता उनका अधिकार छीनने में लगे हुए हैं। ग्राम पंचायतों में महिलाओं की आरक्षित सीट पर पुरुष चुनाव नहीं लड़ सकते, इसलिए वे अक्सर अपनी पत्नी या बेटी को चुनाव में खड़ा कर देते हैं। जीतने के बाद अपना दबदबा कायम रखते हैं। वे अपनी पत्नी और बेटी को मोहरे के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
आदमपुर खंड के 26 गांवों में से 12 गांवों के विकास की बागडोर महिलाओं के हाथ में है। लेकिन उन्हें कभी गांवोंं में विकास कार्य करवाते हुए या फिर खंड विकास एवं पंचायत कार्यालय में देखा गया। उनके स्थान पर उनके प्रतिनिधि के पुरूष लोग ही आते है और वे सारी कार्रवाई देखते है। आदमपुर खंड की विडंबना तो ये है कि इस खंड में खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी के रूप में महिला अधिकारी कीर्ति सिरोहीवाल तैनात है लेकिन फिर भी उनके कार्यालय में किसी भी कार्य हेतु महिला सरपंच नजर नहीं आती।
आदमपुर खंड के गांव असरावां में माया देवी, चबरवाल में निर्मला रानी, चुली बागडिय़ान में राजेश कुमारी, चुली खुर्द सीमा, ढाणी मोहब्बतपुर में कविता, घुडसाल में रामकला, काबरेल में हीरा देवी, खारा बरवाला में पूनम देवी, किशनगढ़ में प्रियंका, महलसरा में किरण बाला, मोहब्बतपुर में उषा रानी व सीसवाल में लक्ष्मी देवी को सरंपच चुना गया था।
डीडीपीओ हिसार सुभाष शर्मा का कहना है कि बोर्डों पर महिला सरपंचों के नाम ना होने के बारें में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। इस बारें में खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी एवं ग्राम सचिव से बात करेंगे। वहीं बीडीपीओ कीर्ति सिरोहीवाल से इस बारें में संपर्क करने का प्रयास किया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया।