हिसार

आदमपुर : पं. शिवदयाल शर्मा का निधन, चौ. भजनलाल के पंचरत्नों में रहे शामिल-जानें उनके बारे में संक्षिप्त रिपोर्ट

आदमपुर,
पूर्व मुख्यमंत्री चौ.भजनलाल के विश्वासपात्र और पंचरत्नों में शामिल पं.शिवदयाल का आज अलसुबह निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार आज शाम 3 बजे स्वर्ग आश्रम आदमपुर में किया जाएगा। वे पिछले काफी समय से दुनियादारी को छोड़कर भक्तिभाव में लीन थे। पं.शिवदयाल शर्मा जवानी से लेकर चौ. भजनलाल के जीवनकाल तक उनकी दुकान पर एकाउंटेंट रहे। चुनावों का खर्च संभालने में भी वे सिद्धहस्त माने जाते थे।

ब्राह्मण सभा का आधार बनें
पं. शिवदयाल शर्मा वर्तमान समय में ब्राह्मण सभा आदमपुर के संरक्षक थे। आदमपुर में ब्राह्मण सभा की नींव रखने वालों में डा. रामेश्वर शर्मा, तहसीलदार गजानंद शर्मा व पं. शिवदयाल शामिल थे। इन्होंने मिलकर ना केवल ब्राह्मण सभा की नींव रखी बल्कि आदमपुर में भव्य ब्राह्मण धर्मशाला का निर्माण करवाने का आधार भी बने। इन्हीं के दिखलाएं मार्ग पर चलकर आदमपुर ब्राह्मण सभा का आकार बढ़कर आदमपुर ब्लॉक स्तर का हुआ।

पंडित जी थे बेवाक
अक्सर बोला जाता हैं कि राजा की नौकरी करना खांडे की धार पर चलने जैसी होती हैं। लेकिन पं. शिवदयाल शर्मा ने सदा सही बात का समर्थन पूरी बेवाकी के साथ किया। अनेक ऐसे किस्से हैं जब उन्होंने सीएम चौ.भजनलाल के आदेशों भी को पुनर्विचार करने के लिए बोल दिया था। राव हरिसिंह और उनकी जोड़ी ना केवल चौ.भजनलाल की दुकान का हिसाब-किताब देखती थी, बल्कि पूरे हलके के वोटों का गुणा-भाग करके विस्तृत रिपोर्ट बनाने का भी काम भी करती थी।

दादा की नजर बहुत तेज है
चुनाव के समय अक्सर चुनावी हिसाब-किताब देखने वाले पं. शिवदयाल शर्मा चुनाव कार्यालय में आने वाले पर हर शख्स की पूरी खबर रखते थे। वो आदमी की बॉडी लैंग्वेज देखकर बता देते थे कि इसका वोट कहां जा रहा है। इसके चलते आदमपुर क्षेत्र के लोग बोलते थे “दादा से कुछ नहीं छुपा, दादा की नजर बहुत तेज है” आदमपुर के अधिकतर पार्टी कार्यकर्ता चुनावी समय उनके पास हाजरी जरुर लगाते थे। उनका मानना था कि चौ.भजनलाल को याद रहे या ना रहे, लेकिन दादा की हाजरी पार्टी के लिए काम करने का पक्का सबुत है।

संघ से रहा नाता
चौ.भजनलाल कांग्रेस विचारधारा के नेता थे। उनके पंचरत्न में शामिल रहने के बावजूद पं.शिवदयाल शर्मा संघ की शाखा में जाते थे। उनका संघ और हिंदुत्व विचारधारा से गहरा प्रेम था। जीवन के अंतिम पड़ाव तक वे संघ के गुरुदक्षिणा कार्यक्रम में शामिल होते रहे। वे संघ की विचारधारा को नए भारत का निर्माण करने वाली विचारधारा बताते थे। वे अक्सर कहते थे कि संघी होने पर उनको गर्व है।

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