धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—274

पुराने समय में एक व्यक्ति जीवन की समस्याओं से दुखी होकर एक संत के पास शिष्य बनने के लिए पहुंच गया। दुखी व्यक्ति ने संत से कहा कि मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं बहुत परेशान हूं। संत ने कहा कि ठीक आज से तुम मेरे शिष्य। अब बताओ क्या परेशानी है?

शिष्य ने बताना शुरू किया, उसने कहा कि बचपन में पिता का निधन हो गया। माता और भाई-बहनों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। कुछ समय बाद मेरा विवाह हुआ तो वैवाहिक जीवन में भी शांति नहीं मिली। एक समस्या खत्म होती तो दूसरी आ जाती है। इस कारण मैं बहुत दुखी हूं। किसी भी काम में सफलता नहीं मिल पाती है।

संत बोले कि मैं तुम्हारी समस्याओं का हल कल बताउंगा। अभी विश्राम करो। कल सुबह तुम मेरे साथ चलना। अगले दिन सुबह होते ही नया शिष्य गुरु के पास पहुंच गया। गुरु ने उससे कहा कि मेरे साथ चलो।

गुरु अपने नए शिष्य को लेकर नदी किनारे पहुंचे। किनारे पर पहुंचकर गुरु ने कहा कि हमें ये नदी पार करनी है। ये बोलकर गुरु किनारे पर ही खड़े हो गए। शिष्य भी गुरु के साथ खड़ा हो गया।

कुछ देर बाद शिष्य ने कहा कि हमें नदी पार करनी है तो हम यहां क्यों खड़े हैं?

गुरु बोले कि जब ये नदी सूख जाएगी, तब ही इसे पार करेंगे। इस समय नदी पार करना आसान रहेगा। शिष्य ये सुनकर हैरान हो गया। उसने कहा कि गुरुजी ये कैसी बात कर रहे हैं? नदी का पानी कैसे और कब सूखेगा? हमें नदी को इसी समय पार कर लेना चाहिए।

संत ने कहा कि मैं भी तुम्हें यही बात समझाना चाहता हूं। जीवन में भी समस्याएं लगातार आती रहेंगी। लेकिन, हमें रुकना नहीं है, लगातार आगे बढ़ते रहना है। तभी हम अपने लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे। आगे बढ़ते रहेंगे तो समस्याओं के हल भी मिलते जाएंगे, लेकिन एक जगह रुक जाएंगे तो एक भी समस्या हल नहीं हो पाएगी और हमारा जीवन संकटों में फंसता चला जाएगा।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सभी के जीवन में समस्याओं का आना-जाना लगा रहता है। हर व्यक्ति की अपनी अलग परेशानियां हैं। कुछ लोग इन बाधाओं से डरकर रुक जाते हैं और उन्हें दूर करने की कोशिश ही नहीं करते हैं। इसका नतीजा ये होता है कि समस्याएं और बढ़ जाती हैं। जबकि कुछ लोग समस्याओं से लड़ते हुए आगे बढ़ते रहते हैं और अपने लक्ष्य पर पहुंच जाते हैं।

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