धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—144

महाप्रलय की रात्रि का चौथा चरण, प्रजापति ब्रह्मा की निद्रा टूटी। परमेश्वर का स्मरण कर पुन: सृष्टि रचना की इच्छा से उन्होंने शैया-त्याग की और बाहर आए तो देखा कि सृष्टि तो पहले से ही तैयार है।

“जिस सृष्टि को रचना की बात मेरे मन में आ रही थी, वह तो पहले से ही तैयार है।” यह सोचकर ब्रह्मा को बड़ा विस्मय हुआ।

उन्होने सूर्य भगवान से प्रश्न किया–“देव! मैं यह क्या देख रहा हूँ, सृष्टि निर्माण की क्षमता और अधिकार तो केवल मुझ प्रजापति को ही है, फिर यह सृष्टि किसने रचकर तैयार कर दी ?”!

जगदात्मा सूर्य देवता हँसे और बोले–”महापुरुष! यह तो आपने एक ओर ही देखा। अभी आप आग्नेय, दक्षिण नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान, ऊर्ध्व और अध:दिशाओं की ओर भी तो दृष्टिपात करें।”

प्रजापति ने दशों दिशाओं की ओर घूमकर देखा तो उन्हें सर्वत्र एक-एक सृष्टि के दर्शन हुए। इससे उनका असमंजस और भी गहरा होता गया!

विस्मित ब्रह्मा ने कहा–”भगवन्‌! अब और अधिक पहेली मत बुझाइए। कृपया यह बताइए कि ये सब सृष्टियाँ रचीं किसने? मुझ जैसी क्षमता किसी में आई तो कैसे आई?’!

सूर्य भगवान ने बताया– प्रजापति! आपकी पूर्व रचित सृष्टि में इंदु नामक एक ब्राह्मण के बहुत समय तक कोई संतान न हुई, तब उसने भगवान शिव की पूजा की।

शिव ने प्रसन्‍न होकर उन्हें दस पुत्रों का वरदान दिया। समय पाकर इंदु के दस पुत्र उत्पन्न हुए। उनकी शिक्षा-दीक्षा संपन्न हुई ही थी कि एक दिन ब्राह्मण इंदु की मृत्यु हो गई।

पुत्रों ने सोचा कोई ऐसा काम करना चाहिए, जिससे हमारे पिता की कीर्ति अमर हो जाए। उन सबने निर्णय किया कि आज तक किसी मनुष्य ने सृष्टि नहीं रची सो हम दसों को दस ब्रह्मा बनकर अपने पिता की स्मृति में दस सृष्टियों की रचना करनी चाहिए। इस निर्णय के साथ ही वह आपका ध्यान करने बैठ गए।

कुछ ही दिन में आपका ध्यान करते-करते उनका संकल्प पक गया तो उनमें भी आपकी सी शक्ति आ गई और उसके आगे का चमत्कार आप देख ही रहे हैं।”

यह कथा महर्षि वशिष्ठ राम को सुना रहे थे। इतनी कथा सुनाने के बाद महर्षि वशिष्ठ ने कहा–“’हे राम! मंत्र के साथ ध्यान का यही विज्ञान है। मनुष्य जिसका भी दृढ़ता से ध्यान करता है, वैसी ही शक्ति वाला बन जाता है।”

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