महाराज दशरथ को जब संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी तब वो बड़े दुःखी रहते थे, पर ऐसे समय में उनको एक ही बात से हौंसला मिलता था जो कभी उन्हें आशाहीन नहीं होने देता था। और वह था श्रवण के पिता का श्राप !!!
दशरथ जब-जब दुःखी होते थे तो उन्हें श्रवण के पिता का दिया श्राप याद आ जाता था।
श्रवण के पिता ने ये श्राप दिया था कि ‘जैसे मैं पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तू भी तड़प-तड़प कर मरेगा।’
दशरथ को पता था कि ये श्राप अवश्य फलीभूत होगा और इसका मतलब है कि मुझे इस जन्म में तो जरूर पुत्र प्राप्त होगा। (तभी तो उसके शोक में मैं तड़प के मरूँगा) यानि यह श्राप दशरथ के लिए संतान प्राप्ति का सौभाग्य लेकर आया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सदैव सकारात्मक रहें। कितनी भी विपरीत परिस्थिती आए उसमें भी आशा की किरण को खोजना चाहिए। जैसे दशरथ को श्रवण के पिता के श्राप में पुत्र प्राप्ति का सौभाग्य दिखाई दे रहा था। इसी प्रकार अपनी प्रत्येक समस्या में आप कुछ अच्छे को खोजने का प्रयास करें।