पुराने समय में एक राजा जंगल में शिकार के लिए गया तो वह रास्ता भटक गया। राजा जंगल में बहुत अंदर तक पहुंच चुका था। उसके पास खाने-पीने की भी व्यवस्था नहीं थी। रास्ता खोजते-खोजते वह काफी थक गया था।
थककर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। तभी उसे एक तोते की आवाज सुनाई दी। तोता बोल रहा था, पकड़ो राजा आया है, इसे लूट लो। राजा तोते की बात सुनकर डर गया। कुछ ही देर में वहां कुछ डकैत आ गए। राजा छिपते हुए वहां से आगे निकल गया।
भागते-भागते वह फिर थक गया था। आराम के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गया। वहां उसने फिर एक तोते की आवाज सुनी। तोता बोल रहा था, हमारे आश्रम में आपका स्वागत है। ठंडा जल ग्रहण करें। हमारे आश्रम में विश्राम करें।
तोते की ये बात सुनकर राजा हैरान था। उसने आसपास देखा तो उसे वहां एक आश्रम दिखाई दिया। राजा आश्रम में पहुंचा तो वहां एक संत बैठे हुए थे। राजा ने संत को प्रणाम किया और पूरी बात बताई। संत ने राजा को खाना-पानी दिया।
भोजन के बाद राजा ने तोतों के बार संत से पूछा। संत ने कहा कि ये सब संगत का असर है। आश्रम में रहने वाला तोता दिनभर साधु-संतों के प्रवचन सुनता है। इस वजह से वह अच्छी बातें बोलना सीख गया। दूसरी ओर वह तोता डकैतों के आसपास रहता है। वह रोज डकैतों की बातें सुनता है तो वह उनकी बोली सीख गया है। संत ने राजा को समझाया कि ये सब संगत का ही असर है।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमें अच्छे लोगों की संगत में रहना चाहिए। बुरे लोगों से दूर रहना चाहिए। हम जैसे लोगों के साथ रहते हैं, हमारा स्वभाव भी वैसा ही हो जाता है। अगर कोई विद्वान मूर्खों के साथ रहने लगेगा तो उसमें भी मूर्खता के गुण जरूर आ जाएंगे। इसीलिए कोई अज्ञानी ज्ञानी लोगों के साथ रहेगा तो उसे ज्ञान जरूर प्राप्त होगा।