धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—239

धीरज नाम का एक लड़का था। वह पढ़ने में काफी अच्छा विद्यार्थी था। उसने देश के सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की थी। उसका प्लेसमेंट भी अच्छे कंपनी में हुआ। उसके आस पड़ोस के लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि चूंकि धीरज बहुत ही अच्छा है पढ़ने में, तो उसे आईएएस परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए। माता पिता का भी यही मन था। यह सब सुन—सुन कर धीरज अपने जीवन में दबाव महसूस करने लगा। एक दिन उसने सोचा कि मैं यह नौकरी छोड़कर आईएएस परीक्षा की तैयारी करता हूं और उसने ऐसा ही किया।

कई वर्ष बीत गए, परंतु वह आईएएस परीक्षा में उतीर्ण नही हो पाया। अब उसके सारे प्रयास असफल हो चुके थे। और, अब वह इस परीक्षा में बैठने के लिए अयोग्य हो चुका था। क्योंकि, उसकी आयु 32 वर्ष हो चुकी थी। अब ना तो वह इंजीनियरिंग में वापस जाना चाहता था, और ना ही उसका मन किसी और सेवा की परीक्षा में या नौकरी में लग रहा था। वह बहुत ही तनावपूर्ण रहने लगा। अब बात बस इतनी सी नहीं थी कि उसने आईएएस परीक्षा में सफलता नही पाई। अब बातें बहुत सारी थीं, दूसरी नौकरी की सोच भी उसे परेशान करती थी। अपनी असफलता को वह स्वीकार नही कर पा रहा था।

जो लोग पहले यह कहते थे कि धीरज तुम पढ़ने में बड़े अच्छे हो तुम्हें प्रशासनिक सेवा की तैयारी करनी चाहिए आज वही कहते थे कि बाप के पैसों पर खाता है। पैसे नही कमाता, मां बाप का राशन खाता है। नौकरी नहीं लगी है, शादी भी नहीं हुई है। और अब इससे शादी भी कौन करेगा? शादी के लिए इसकी उम्र भी ज्यादा हो गई है। और जब नौकरी ही नहीं तो फिर शादी कैसी? माता–पिता भी उसकी असफलता से तनावपूर्ण रहने लगे थे। उनका व्यवहार भी अपने बेटे के तरफ अच्छा नहीं था। वो ऐसा जान बूझकर नहीं करते थे। उन्हें भी समाज के लोग जो सुनाते थे, उससे वे लोग विचलित हो जाते थे। और इसका असर उनके व्यवहार में दिखता था। इन सब से धीरज का जीवन के प्रति नजरिया बदलने लगा।

उसका व्यवहार बदल गया, वह सदैव तनाव पूर्ण रहने लगा। उसके अंदर हर प्रकार की असुरक्षा की भावना जन्म लेने लगी। फिर उसके दोस्तों ने समझाया कि जो विकल्प अभी तुम्हारे पास है, उस पर ध्यान दो। जो समाप्त हो गया उसे जाने दो। बहुत समझाने के बाद, धीरज फिर से दूसरी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया। एक साल के अंदर ही उसे सरकारी नौकरी भी मिल गई। परंतु, उसका व्यवहार न बदला, वह सदैव परेशान रहने वाला अधीर धीरज बन गया। सदैव तनाव में रहता, कि यह होगा कि वह होगा। ऐसा न हुआ, तब क्या होगा।

कुछ समय पश्चात उसकी शादी हो गई। उसकी धर्मपत्नी एक अच्छी महिला थी। जो कि शहर के ही एक बड़ी कंपनी में काम करती थी। कुछ समय बाद उनके जुड़वा बच्चे हुए, एक लड़का और एक लड़की। बाहर से देखने में धीरज का जीवन पूर्ण लगता था। अच्छी नौकरी, अच्छी पत्नी, प्यारे प्यारे दो छोटे बच्चे, और क्या चाहिए एक आदमी को जीवन में? परंतु इन सब के बीच धीरज सदैव तनावपूर्ण रहता था। जब भी बच्चे किसी बात पर झगड़ते हल्ला करते। तो उसे लगता यह कितने अशिष्ट है? उन्हें ज्ञान सिखाने के बजाय वह सदैव यह सोचता कि वह ऐसे क्यों है?

जब उसकी पत्नी उसे समझाती हुई कहती कि बच्चे हैं झगड़ा, हल्ला तो करेंगे ही। तब उसे लगता कि उसकी पत्नी कितनी कामचोर है? वह बच्चों को संभालने के बजाए मुझे यह ज्ञान दे रही है। जब कभी उसकी पत्नी अपने दफ्तर से देर से घर आती। और कहती कि आज का खाना बाहर से मंगवा लेते हैं तो वह सोचता यह कैसी है? अपनी जिम्मेदारी नहीं उठाती है। बस बाहर घूमना इसे अच्छा लगता है। पर वह कभी नहीं सोचता कि उसकी पत्नी हर दिन अपने दफ्तर के साथ, घर का सारा काम, बूढ़े सास ससुर और बच्चों को भी संभालती है। अच्छी बातों को वह देख नहीं पाता था। बुरी बातों और समस्याओं से सदा तनाव में रहता था।

सदैव तनावपूर्ण रहता हुआ, उसने एक दिन सोचा की, मैं इन सब को छोड़ कर कहीं दूर चला जाता हूँ, तभी मुझे तनाव से मुक्ति मिलेगी। यही सब सोचता हुआ वह अपने दफ्तर से घर की ओर आने के लिए गाड़ी में बैठ गया। गाड़ी में बैठकर जाने लगा, तो उसने देखा कि शहर में एक बड़े से साधु बाबा आए हैं। उनका नाम उसने पहले भी सुना था और उनमें विश्वास भी रखता था। उसने ड्राइवर से कहा कि ड्राइवर! यह गाड़ी तुम शिविर में ले चलो, मैं साधु बाबा से अभी मिलूंगा। सरकारी नौकरी में उच्च पद पर पदस्थ धीरज बाबू के लिए, उनके शहर में आए साधु बाबा से मिलना कौन सी बड़ी बात थी? नाम तो उनका धीरज था पर बड़े ही अधिर थे। नियम–कानून, लाइन को तोड़ते हुए अपनी सरकारी शक्ति को दर्शाते हुए बाबा के पास पहुंच गए।

बाबा के पास पहुंच कर हाथ जोड़ कर बाबा से कहा “मैं बड़ी तकलीफ में हूं। बहुत ही तनावपूर्ण है मेरा जीवन और मैं तनावपूर्ण जीवन का हल चाहता हूँ। मुझे अपनी शरण में ले लो। मैं अपने घर में नहीं रहना चाहता। आप कहो तो मैं नौकरी छोड़ दूंगा। मैं तनावपूर्ण जीवन से थक चुका हूं। मुझे इस तनावपूर्ण जीवन से मुक्ति दे दो।” बाबा ने मुस्कुराते हुए पूछा “सब छोड़ दोगे तो जाओगे कहां?” धीरज कहने लगा “बाबा आपका तो इतना बड़ा आश्रम है, मुझे रख लो वही पर।”

साधु बाबा ने फिर मुस्कुराते हुए कहा, “वह सब तो ठीक है, परंतु जिस चीज को तुम छोड़ कर जाना चाहते हो, उसे साथ लेकर नही जा सकते।” धीरज ने बाबा से कहा “मैं नही समझ पाया बाबा, आप क्या कह रहे हैं?” बाबा ने कहा “तुम तनाव को लेकर आश्रम नही जा सकते।” तभी धीरज तपाक से बोला “बाबा मैं जानबूझकर तनाव में थोड़ी रहता हुँ, मैं समस्या नही चाहता। मैं नही चाहता कि मुझे तकलीफ हो, कष्ट हो, मैं बार–बार इन बातों को सोचूं। मैं नहीं चाहता कि मुझे तनाव हो। परंतु अब ईश्वर ने मेरे जीवन में इतना तनाव लिख ही दिया है। मैं इस से हार चुका हूं। मुझे अब इस तनावपूर्ण जीवन का हल नहीं मिल रहा।

बाबा ने पूछा “बेटा, क्या केवल तुम्हारे जीवन में ही तनाव है?” फिर थोड़ा रुक कर उससे कहा “मैं तुम्हें एक कार्य देता हूं। तुम घर जाने से पहले यह कार्य कर लो।” धीरज को बाबा में आस्था तो थी ही, तो उसने हाथ जोड़कर बोला, “जी बाबा बोलिए।” तो साधु बाबा कहते हैं, “सामने मेला लगा है, तुम उस मेले में जाओ। और, वहां से कुछ ऐसे लोगों को पकड़कर लाओ जिनके जीवन में तनाव नहीं है। और सुनो! कम से कम एक को जरूर लेकर आना। धीरज ने हामी में सिर हिलाते हुए बोला “जी ठीक है” और चला गया।

मेले में जाकर, उसने बहुत सारे लोगों से पूछा कि “उनके जीवन में तनाव है या नहीं है“। परंतु, वह यह देख आश्चर्यचकित हुआ कि किसी ने भी नही कहा कि “मेरे जीवन मे तनाव नही है।” सब अपनी तकलीफ को बढ़ा चढ़ा कर सुनाने लगे। तब उसने लोगों से पूछा, क्या कोई ऐसा नही जिसके पास कोई तनाव न हो। लोगों ने कहा “है ना, पागल को तनाव नहीं होता है, शराबी को तनाव नहीं होता, बच्चों और बुड्ढों को तनाव नहीं होता है।

वहीं एक आदमी बैठकर शराब पी रहा था और नशे में धुत था। उसने बड़—बड़ाते हुए कहा “बात तो सही है, शराबी को तनाव नहीं होता। हमें क्या पड़ी है, कहां क्या हो रहा है? बस इतनी सी चिंता रहती है कि आज दारु का जुगाड़ कहां से होगा? कहां से पैसे मिलेंगे कि मैं बोतल खरीद पाऊंगा?” यह सुन धीरज को लगा कि इस शराबी के जीवन में भी तनाव है।

तभी वहां बैठा बुड्ढा हंसने लगा। और बोला “हां शराबी का जीवन अच्छा है। उसे तो सिर्फ इस बात की चिंता है कि दारू की बोतल कहां से मिलेगी? हम बुड्ढों से पूछो इस उम्र में हाथ पांव तो चलते नहीं है। खाना क्या खाएंगे उसकी भी चिंता रहती है। उसकी बात खत्म भी नही हुई थी कि वहां पर एक पागल हल्ला करता हुआ आया। लोगों ने उसे भगाने के लिए, उसे दौड़ाना शुरू कर दिया। और वह “मुझे मत मारो, मुझे मत मारो” बोलकर रोता हुआ दौड़ कर भाग रहा था।” यह सब देख धीरज को लगा कि चाहे वह आम आदमी हो, शराबी हो, पागल हो या बुड्ढा हो तनाव तो सबके जीवन में है।

तभी एक बच्ची उसके पास आती है और कहती है “अंकल! क्या आप मुझे कुछ रुपए दे सकते हैं? मुझे भूख लगी है। माँ ने जो पैसे दिए थे, मेले में आने के लिए, वो मुझसे गिर गए।” धीरज ने बड़बड़ाते हुए पचास रुपये निकाला कि “बच्चों को भी तनाव का सामना करना पड़ रहा है, इस बच्ची को भूख लगी है, और पैसे नहीं है।” बच्ची ने रुपये लेते हुए कहा “क्या अंकल? इसको तनाव थोड़ी ना कहते हैं। यह तो भूख की समस्या है। बच्ची की इस बात से धीरज की अकल ठिकाने आ गई।

वह दौड़ा भागा साधु बाबा के पास पहुंचता है। और, उनके चरणों में गिर जाता है। बाबा उसे कहते हैं “क्या हुआ बेटा तुम इतने दौड़ते भागते क्यों आए हो?” उसने कहा “आपने मेरी आंखें खोल दी। यदि आपने मुझे मेले में ना भेजा होता। तो, मैं तो यह जान ही नहीं पाता कि मैं कितना मूर्ख हूं। मैं समझ गया कि जीवन ने केवल मुझे दुख नहीं दिए हैं। सबके जीवन में अपने हिस्से के सुख–दुख, अपने हिस्से की परेशानियां है। चाहे बुड्ढा हो, चाहे पागल हो, चाहे अपाहिज हो, चाहे सामर्थ्यवान हो, चाहे बच्चा हो या है जवान हो! सबके जीवन में अपने अपने हिस्से के सुख–दुख परेशानियां है।

और तो और, मेरी आंखें तब खुली की खुली रह गई, जब एक बच्ची ने बताया की “तनाव तो कोई समस्या है ही नहीं, समस्या तो भूख है।” और मैं आज तक समझता था कि, तनाव मेरी समस्या है। यदि मैंने अपनी समस्याओं का निवारण किया होता, तो मुझे कभी तनाव होता ही नहीं। यह सब सुनकर बाबा मुस्कुराते हुए उसकी पीठ थपथपाने लगे।

धीरज ने बाबा से कहा, “परंतु, अभी भी एक प्रश्न मेरे मन में शेष है। बाबा जी! हम हर समस्या का निवारण तो नहीं कर सकते। तो क्या उस वजह से हमें तनाव नहीं होगा?” बाबा बोले “इतनी बात समझ गए हो तुम, तो यह भी समझ लो पुत्र की समस्या केवल लंबित या अपूर्ण कार्य या मंशा ही नही होती। कभी कभी जब परिस्थिति और मन की स्थिति में भेद हो, तब वह भी समस्या है। कभी तो समाधान समस्या का निवारण है। और कभी कभी, मात्र स्थिति परिस्थिति को स्वीकार लेना भी अपने आप में निवारण है। बाबा की बातें सुन, जीवन में तनाव से मुक्ति का ज्ञान पाकर धीरज अपने घर पर चला गया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, तनाव कोई समस्या नहीं है। समस्या आने पर तनाव में नही आना चाहिए। यह एक मनोस्थिति है। अपितु उसका समाधान करना चाहिए। यदि मंशा के विरुद्ध कुछ घटित हो रहा है तब तनाव उत्पन्न होता है। इसलिए, मनुष्य को चाहिए कि अपने समस्याओं का निवारण करें। और, विपरीत परिस्थिति में धैर्य रखते हुए परिस्थिति के अनुकूल चले। दुनिया में कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जिसके जीवन में समस्याएं ना हो। परंतु उन समस्याओं की वजह से तनाव में रहना है या नहीं रहना है यह मनुष्य का अपना चुनाव है। अपने जीवन मे सतर्कता से चुनाव करें।

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