धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—284

पुराने समय में एक शिष्य ने अपने गुरु से कहा कि वह अपने जीवन से बहुत परेशान है, दुखों को कैसे दूर कर सकते हैं, इसका उपाय बताइए। गुरु ने सोचा कि ये प्रश्न बहुत छोटा है, लेकिन उत्तर समझा पाना बहुत मुश्किल है। उन्होंने शिष्य से कहा कि मैं तुम्हें इसका उपाय बता दूंगा, लेकिन पहले मेरा एक काम कर दो। गांव में से किसी ऐसे व्यक्ति के जूते ले आओ जो सबसे सुखी है। शिष्य ने सोचा कि ये तो छोटा सा काम है, मैं अभी कर देता हूं।

शिष्य गांव में निकल गया और एक व्यक्ति से बोला कि आप मुझे गांव के सबसे सुखी इंसान दिख रहे हैं, क्या आप मुझे अपने जूते दे सकते हैं? ये सुनते ही वह आदमी भड़क गया और बोला कि भाई मैं अपनी पत्नी की वजह से बहुत दुखी हूं। वह मेरी कोई भी बात नहीं मानती है।

शिष्य दूसरे व्यक्ति के पास पहुंचा। उसने वही बात बोली जो पहले व्यक्ति से कही थी। दूसरा व्यक्ति भी बोला कि वह अपने कामकाज की वजह से दुखी है। व्यापार में नुकसान हो रहा है। इसी तरह शिष्य तीसरे व्यक्ति के पास पहुंचा तो उसने कहा मेरे जीवन में बहुत संकट है। मैं बीमारियों की वजह से हमेशा दुखी रहता हूं। सुबह से शाम हो गई, लेकिन शिष्य को कोई सुखी व्यक्ति नहीं मिला।

शाम को शिष्य गुरु के पास पहुंचा। गुरु ने पूछा कि तुम जूते ले आए? शिष्य ने कहा कि गुरुजी गांव में तो सभी दुखी हैं। सभी अलग-अलग वजहों से परेशान हैं। गुरु ने कहा कि हर व्यक्ति दूसरों को सुखी समझता है और खुद के लिए भी वैसा ही चाहता है, जब मन के अनुसार फल नहीं मिलते हैं तो वह दुखी होता है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सुखी जीवन का सूत्र यह है कि हमें कभी भी दूसरों को देखकर अपना रास्ता नहीं बदलना चाहिए, हमेशा काम करना चाहिए और अपने काम से और उसके फल से संतुष्ट रहना चाहिए। तभी हम सुखी रह सकते हैं।

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