धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—287

एक धनी व्यापारी था। उसके पास अपार धन-संपत्ति थी। एक दिन उसने अपनी पूरी संपत्ति का मूल्यांकन किया तो उसे मालूम हुआ कि उसके पास इतना धन है, जिससे उसकी सात पीढ़ियां आराम से जी सकती हैं। व्यापारी ने सोचा कि मेरी सिर्फ सात पीढ़ियां ही सुखी रहेंगी, आठवीं पीढ़ी का क्या होगा? उन्हें सुख कैसे मिलेगा? ऐसा सोचकर वह एक संत के पास गया।

संत से व्यापारी ने कहा कि महाराज कृपया मेरी चिंता का निवारण करें। मेरे पास सिर्फ सात पीढ़ियों के लिए ही धन है। मेरी आठवीं पीढ़ी भी सुखी जीवन जी सके, इसके लिए कोई उपाय बताएं। संत ने कहा कि गांव में एक वृद्ध महिला है, उसके घर में कमाने वाला कोई नहीं है। बड़ी मुश्किल से उसे रोज का खाना मिल पाता है। तुम एक काम करो, उस महिला को आधा किलो आटा दे दो। इस छोटे से दान से तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी।

व्यापारी अपने घर गया और वहां से एक बोरी आटा लेकर महिला के घर पहुंचा। उसने वृद्ध महिला से कहा कि मैं आपके एक बोरी आटा लेकर आया हूं। कृपया इसे ग्रहण करें। वृद्ध महिला ने कहा कि आज मेरे पास आटा है, इसीलिए मुझे ये नहीं चाहिए। व्यापारी ने बोला कि रख लीजिए इससे आपको कई दिनों तक खाने की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। महिला ने कहा कि मैं इसे रखकर क्या करूंगी, मेरे आज के खाने की व्यवस्था हो गई है।

व्यापारी ने कहा कि ठीक ज्यादा मत रखो, थोड़ा ही ले लो कल काम आ जाएगा। महिला बोली कि मैं कल की चिंता नहीं करती, जैसे आज खाना मिला है, कल भी मिल जाएगा। महिला की बात सुनकर व्यापारी को समझ आ गया कि इस महिला के पास भोजन की व्यवस्था नहीं है, लेकिन ये कल की चिंता नहीं करती है। मेरे पास तो अपार धन-संपत्ति है, फिर भी मैं बिना वजह चिंता कर रहा हूं। मुझे इस चिंता का त्याग करना चाहिए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमें कल की चिंता में आज को खराब नहीं करना चाहिए। अधिकतर लोग भविष्य के लिए धन संचय करते हैं, लेकिन वर्तमान में परेशान होते रहते हैं। जबकि हमें आज अच्छी तरह जीना चाहिए।

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