धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—294

पुराने समय में एक व्यापारी के पास बहुत धन-संपत्ति और सभी तरह की सुख-सुविधाएं थीं, लेकिन उसका मन हमेशा अशांत ही रहता था। हर समय वह तनाव में रहता था। व्यापार के लिए एक गांव से दूसरे गांव यात्रा करता था। एक दिन यात्रा करते समय उसे एक आश्रम दिखाई दिया। वह आश्रम में गया। वहां एक संत अकेले रहते थे। व्यापारी ने संत को प्रणाम किया और अपनी परेशानियां बताईं।

संत ने कहा कि तुम्हें शांति चाहिए तो तुम कुछ देर यहां बैठकर ध्यान करो। व्यक्ति ने ध्यान लगाने कि कोशिश की, लेकिन वह ध्यान नहीं लगा पा रहा था। उसके मन में इधर-उधर की बातें घूम रही थीं। बहुत कोशिश के बाद भी वह ध्यान नहीं लगा सका। तब उसने संत से कहा कि वह ध्यान नहीं लगा सकता।

संत ने उससे कहा कि ठीक है चलो मेरे साथ, कुछ देर आश्रम में घूमते हैं। व्यापारी संत के साथ चल दिया। आश्रम में वह एक पेड़ को हाथ लगा रहा था, तभी उसके हाथ में एक कांटा चुभ गया। कांटे की चुभन की वजह से उसे दर्द हो रहा था। संत तुरंत ही आश्रम से एक लेप लेकर आए और उन्होंने व्यक्ति के हाथ पर लगा दिया।

संत ने व्यापारी से कहा कि जिस तरह कांटा चुभने से दर्द हो रहा है, ठीक उसी तरह तुम्हारे मन में भी क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, लालच जैसे कांटे चुभे हुए हैं। जब तक इन कांटों को निकालेगे नहीं, तुम्हें शांति नहीं मिल पाएगी।

व्यापारी को संत की बात समझ आ गई और वह उनका शिष्य बन गया। इसके बाद उसने धीरे-धीरे अपनी इन बुराइयों को दूर कर लिया। अपने धन का उपयोग उसने समाज कल्याण में करना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में उसकी अशांति दूर हो गई।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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