महाभारत काल के समय में द्रौपदी के कहने पर भीम कमल का फूल लेने के पर्वत के पास सरोवर पर जा रहे थे। भीम में कई हाथियों के बराबर बल था। उनके बल के आगे अच्छे से अच्छे बलशाली धाराशाही हो जाते थे।
भीम जब सरोवर पर जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें वृद्ध वानर मिलता है। भीमसेन उसकी पूंछ को लांघकर जाना नहीं चाहते थे, तो उन्होंने वानर से पूंछ हटाने के लिए कहा लेकिन वानर ने कहा कि इस उम्र में बार-बार हिल नहीं सकता हूं। तुम तो काफी बलशाली हो, तो एक काम करो तुम ही मेरी पूंछ हटाकर चले जाओ।
इसके बाद भीम पूंछ को हटाने के लिए हल्के हाथ का प्रयोग किया। लेकिन पूंछ नहीं हिली। ये देखकर भीम अपने संपूर्ण बल से पूंछ हटाने की कोशिश करते है लेकिन पूंछ एक इंच भी नहीं हिल पाती है। इसके बाद भीम समझ जाते हैं कि यह कोई साधारण वानर नहीं है वह हाथ जोड़ प्रणाम करते हैं। इसके बाद वह उनसे परिचय देने का निवेदन करते हैं। वृद्ध वानर अपने असली रूप में आते हैं। पवन पुत्र हनुमान भीम को अहंकार छोड़ने की सीख देते हैं।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कभी भी अपने ज्ञान और बल पर घमंड नहीं करना चाहिए। अहंकार व्यक्ति की बुद्धि की आंखों को बंद कर देता है। इसके बाद उसे ठीक—गलत, नैतिक—अनैतिक और धर्म—अधर्म का ज्ञान नहीं रहता। वह अपने अहं की पूर्ति के गलत कार्य करने लगता है। इसलिए अहंकार को आने से पूर्व ही भक्ति व सत्संग के माध्यम से रोक दो।