धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—431

एक गांव में धनसिंह नाम का एक धनी और लोभी व्यक्ति रहता था। अपनी दुकान पर आने वाले प्रत्येक मनुष्य को ठगना उसका नित्य का काम था। इससे उसे काफी धन प्राप्त होता था, किंन्तु वह उसके पास टिक नहीं पाता था।

कभी बीमारी में व्यय हो जाता, तो कभी दुकानदारी में कोई बड़ा नुकसान हो जाता। यह देखकर उसकी पुत्रवधू उसे समझाती कि बेईमानी के पैसों से बरकत नहीं होती, किन्तु धनसिंह उसकी बात अनसुनी कर देता। पुत्रवधू उन्हें अक्सर कहती थी कि ईमानदारी का एक पैसा भी इधर से उधर नहीं हो सकता।

एक दिन उसके सोने की एक पंसेरी बनवाई। फिर उस पर अपनी छाप लगाकर कपड़े में मढ़ा और एक चौराहा पर रख आया। कुछ दिन एक व्यक्ति ने उसे उठाकर पास के तालाब में फेंक दिया। उस तालाब में उसे एक बड़ी मछली ने निगल लिया।

कुछ दिनों बाद मछुआरे ने उस तालाब में जाल डाला तो मछली उसमें फंस गई। मछुआरे ने जब मछली का पेट चीरा, तो वह पंसेरी बाहर निकल आई। मछुआरा ईमानदार व्यक्ति था। उसने जब धनसिंह के नाम की छाप पंसेरी पर देखी तो उसे धनसिंह को लौटाने चला गया।

महीनों बाद अपनी सोने की पंसेरी को वापिस पाकर धनसिंह बहुत खुश हुआ। अब उसे पुत्रवधू की बात विश्वास हो गया कि ईमानदारी का धन कहीं नहीं जाता और बेईमानी से कमाया धन कभी नहीं फलता। उसी दिन से उसने बेईमानी छोड़ दी।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, ईमानदारी से अर्जित धन मानसिक शांति देने के साथ ही स्थायी भी होता है। ईमानदार और सच्चे दिल वाला व्यक्ति स्वयं को सदा हल्का व तनावमुक्त अनुभव करता है। जो लोग ईमानदार हैं उनके साथ ईमानदार रहिये और जो लोग ईमानदार नहीं हैं उनके साथ भी ईमानदार रहिये। इसी प्रकार ईमानदारी सिद्ध होती है।

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