भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। ऐसे में हम अपने जीवन को सफल बनाने के लिए भगवान राम के जीवन से प्रेरणा ले सकते हैं। वह जिस तहर से समय और स्थिति को देखकर आगे की रणनीति बनाते थे उनसे मैनेजमेंट गुर सीखे जा सकते हैं।
भगवान राम को चूंकि दैवीय शक्ति प्राप्ति थी, तो वह चाहते तो कुछ भी एक इशारे में कर सकते थे। वह चाहते तो खुद को भगवान बताकर बुराइयां खत्म करने का अभियान चला सकते थे, लेकिन नहीं। उन्होंने हर काम एक आम व्यक्ति की भांति किया जिससे लोग उनसे सीख सकें। भगवान राम ने खुद उस रास्ते पर चलकर दिखाया जिसे लोग आदर्श मानते थे। उन्होंने जिस तरह से हर काम किया लोग उसकी मिसाल देते हैं।
तमिलनाडु के तट से लंका तक पुल बनाना उस वक्त इंसानों की बस की बात नहीं थी। हजारों, लाखों की संख्या में भी लोग पुल बनाते तो उसमें सालों लग जाते। लेकिन भगवान राम ने अपनी वानर सेना को इस तरह से प्रोत्साहित किया उन्हें बहुत ही कम समय में पुल का निर्माण कर डाला।
भगवान राम चूंकि राज परिवार से थे। वे चाहते तो केवट या शबरी को बिना गले लगाए भी अपना वनवास गुजार सकते थे। लेकिन उन्होंने सामाजिक समानता के लिए शबरी और के केवट को गले लगाया। ऐसा करने से उनके साथ लोगों में समानता का विश्वास पैदा हुआ।
भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास मिला था, जिसमें 12 साल उन्होंने चित्रकूट में ही बिता दिए। जब उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि वन के सभी लोग उन्हें पहचानने लगे हैं, इससे उनके उद्देश्य में व्यवधान पड़ सकता है, तब वह वन से अगले पड़ाव की ओर चल पड़े थे। राम को आत्मप्रचार पसंद नहीं था। वे चुपचाप रहकर काम करना पसंद करते थे और अपने बारे में किसी को अधिक बताना भी नहीं चाहते थे। विज्ञापन के इस युग में राम के चरित्र से एक सीख लेनी चाहिए कि बिना प्रचार के शांतिपूर्वक हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें।