भगवान श्रीकृष्ण से मगध के राजा जरासंध को बड़ी ही नफरत रहती थी। इसलिए एक बार जरासंध ने श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। इस युद्ध में विजय की कामना से उसने अपने साथ यवन देश के राजा कालयवन को भी युद्ध में सम्मिलत कर लिया क्योंकि कालयवन अजेय था।
उसने भगवान शंकर को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किया था। जिसके अनुसार ना तो कोई चंद्रवंशी और ना ही सूर्यवंशी उसे मार सकता है। ना ही कोई अस्त्र मार सकता है और ना ही कोई अपने बल से उसे परास्त कर सकता है।
भगवान शंकर के इस वरदान की वजह से ही कालयवन खुद को अजेय समझता था। इसलिए जरासंध के कहने पर कालयवन ने मथुरा पर आक्रमण कर दिया। सर्वज्ञाता भगवान कृष्ण को इस बात का पहले से ही पता था कि कालयवन को परास्त नहीं किया जा सकता। इसलिए उन्होंने लीला रची और युद्ध भूमि से भाग गए। जिसकी वजह से ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा। युद्धभूमि से भागकर श्रीकृष्ण एक अंधेरी गुफा में पहुंचे। जहां पर पहले से ही इक्ष्वाकु वंश के राजा मंधाता के पुत्र और दक्षिण कोसल के राजा मुचकुंद गहरी निद्रा में सो रहे थे।
दरअसल, राजा मुचकुंद ने असुरों से युद्ध कर देवताओं को विजय दिलाई थी। लगातार कई दिनों तक युद्ध की वजह से बहुत थक गए थे। इसलिए देवराज इंद्र ने उनसे सोने का आग्रह किया और वरदान दिया कि जो कोई भी आपको निद्रा से जगाएगा वो जलकर भस्म हो जाएगा। श्रीकृष्ण ने लीला स्वरुप उसी गुफा में प्रवेश किया था। जहां मुचकुंद सोए थे। भगवान का पीछा करते हुए जब कालयवन उस गुफा में पहुंचा तो श्री कृष्ण ने उसे भ्रमित करने के लिए अपना पीतांबर राजा मुचकुंद के ऊपर डाल दिया।
अंधेरी गुफा में कालयवन को लगा कि श्री कृष्ण गुफा में छिपकर सो रहे हैं। इसलिए उसने राजा मुचकुंद को श्रीकृष्ण समझकर जगा दिया। राजा मुचकुंद के जगते ही कालयवन भस्म हो गया। भगवान श्रीकृष्ण ने पूरे जीवनकाल में तमात लीलाएं की और लोगों का उद्धार किया। यह लीला भी इसी में से एक है जिसके बाद उनका नाम रणछोड़ पड़ा।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कभी-कभी परिस्थिति के अनुसार, अपनी रक्षा के लिए या दूसरों की रक्षा के लिए, युद्ध या संघर्ष से पीछे हटना भी आवश्यक हो सकता है। यह “रणछोड़ नीति” सिखाती है कि शक्ति और पराक्रम के साथ-साथ, बुद्धिमानी और परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेना भी महत्वपूर्ण है।