धर्म

ओशो : का सोवे दिन रैन -232

मधुशालाओं में आओ-जाओ। पिथक्कड़ो के पास बैठो। जहां शराब ढलती हो वहां से हटो ही मत। संत्संग करो। एक तो यह उपाय है।
परमात्मा से तुम्हारी पहचान नहीं। सच कैसे याद करोगे? किसकी याद करोगे? करोगे भी तो झूठी होगी। हृदय से नहीं उमगेगी। बुद्धि के द्वारा आरोपित होगी। करनी चाहिए, इसलिए करोगे। प्राणों का उससे संवाद नहीं होगा। उसमें तुम्हारे जीवन की धुन नहीं बजेगी। उधार होगी। दो कौड़ी की होगी। ऐसी याद से परमात्मा नहीं पाया जाता है।
तो पहला सबसे सुगम और सबसे करीब मार्ग है: किसी ऐसे व्यक्ति की आंख में झांको, जिसने परमात्मा जाना हो। क्योंकि जिसने परमात्मा जाना है, उसकी आंख में नशा सदा के लिए शेष रह जाता है। चांद नहीं दिखाई पड़ता तो झील में झांको। झील में प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ेगा। माना कि प्रतिबिम्ब चांद नहीं है , लेकिन चांद का है। फिर प्रतिबिम्ब से चांद तक की यात्रा सुगम हो सकेगी। कुछ तो पहचान हो जाएगी। व्यक्ति न देखा, चलो उसकी तस्वीर ही देखी, कुछ तो पहचान हो जायेगी। दर्पण में झलक देखी, उस झलक से ही हृदय-तव्रीं पर गीत उठाना शुरू होता है।
एक अर्थ में सुगम है यह बात, दूसरे अर्थ में कठिन भी। कहां खोजो ऐसे व्यक्ति को? फिर, किसी व्यक्ति में परमात्मा की झलक पड़ी है, यह स्वीकार करना हमारे अंहकार को बड़ा कठिन होता है। परमात्मा की झलक देने वाले व्यक्ति सदा मौजूद रहे हैं, सदा मौजूद है। पृथ्वी कभी उनसे खाली नहीं होती। थोड़े होंगे, मगर हैं। और जो खोजता है उसे मिल जाते हैं। प्यासा खोजने निकले तो पानी खोज ही लेता है। भूख निकले तो भोजन मिल ही जाता है, देर-अबेर लेकिन नहीं मिलता, ऐसा नहीं हैं, जिन्होंने भी कभी खोजा हैं, उन्हें मिला है। जीवन आधार नवंबर माह प्रतियोगिता.. प्ले ग्रुप से दसवीं तक विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीतेंगे सैंकड़ों उपहार.. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे
लेकिन कठिनाई तुम्हारी तरफ आती है। तुम्हारा अंहकार यह स्वीकार करने को राजी नहीं होता कि किसी व्यक्ति में परमात्मा की झलक आई है। तुम्हारा अंहकार कहीं झुकने को राजी नहीं होता । तुम्हारा अंहकार हजार बाधाएं खड़ी करता है। तुम्हारा अंहकार पहाड़ बन कर खड़ा हो जाता है बीच में। और पहाड़ बचने की जरूरत भी नहीं है:आंख में जरा-सी कंकड़ी भी पड़ी हो, तो भी आंख बंद हो जाती हैं। और अंहकार का पहाड़ लिए हम चलते हैं। इस पहाड़ के कारण तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता। इस पहाड़ को उतार कर रखो।
अंहकार को उतार कर जो रख दे, उसे देर न लगेगी उस व्यक्ति को खोज लेने में, जहां से झलक शुरू हो जाए, जहां से लालसा का जन्म हो, अभीप्सा पैछा हो जाए। सच तो यह है ,अगर तुम अंहकार को उतार कर रख दो तो तुम्हें खोजने न जाना पड़ेगा उस व्यक्ति को, वैसे व्यक्ति तुम्हें खोजते चले आयेंगे। सद्गुरू तुम्हारे द्वार पर दस्तक देगा। दस्तक शायद बहुत बार दी होगी, मगर तुम गहरी नींद में सोए हो। अंहकार बड़ी गहरी नींद है। कौन सुनता है: दस्तक और सद्गुरूओं की दस्तक बड़ी धीमी होती है, बड़ी सूक्ष्म होती है,चिल्लाने की तरह नहीं होती, कानाफूसी की तरह होती है। बड़ी माधुर्य से भरी होती है। नाजूक होती है। स्त्रैण होती है।
अंहकार उतार रखो। परमात्मा की फ्रिक छोड़ दो। मैं तुम्हारी बात समझा, तुम्हारा प्रश्र समझा, तुम्हारे प्रश्र की संगति समझा। ठी पूछा है तुमने। सार्थक पूछा है तुमने। यह प्रश्र सभी का प्रश्र है। करें तो कैसे उसकी याद करें? पुकारना भी चाहें तो किस दिशा में पुकारे? किसका नाम पुकारें? वह है भी? हमें भरोसा नहीं आता। अनुभव न हो तो भरोसा कैसे आयेगा? इस दुष्ट -चक्र को तोड़े कैसे? अनुभव हो तो भरोसा आए। और अनुभवी कहते हैं कि भरोसा हो जाए तो अनुभव हो। अब बड़ी अड़चन खड़ी हो जाती है। बिना अनुभव के भरोसा नहीं आता। बिना भरोसे के अनुभव नहीं होता। करें क्या? आदमी बड़ी दुविधा में पड़ जाता है। 3 महिने नौकरी करो और सालभर वेतन लो, अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
तुम्हारा द्वंद्व समझा। तुम्हारी दुविधा समझ आई। तुम परमात्मा की फ्रिक ही मत करो। तुम सिर्फ अपने अंहकार को उतार रखो। यह तो कर सकते हो। अंहकार से तुम्हारी भलीभांति पहचान है। अंहकार के ढंग से तुम जिए हो। और अंहकार से तुमने दुख के अतिरिक्त कुछ पाया नहीं। नर्को का ही निर्माण हुआ है। तुम्हारें अंहकार से। इसे छोडऩे से कुछ खोएगा नहीं- दुख खो जायेंगे, नर्क मिट जायेगा।
अंहकार से तुमने कभी कोई सुख जाना है? घाव की तरह अंहकार दुखता है। हर छोटी-छोटी बात दुखती है। जितना अंहकार होता है उतनी जीवन में पीड़ा होती है। इस पीड़ा के स्त्रोत को हटा दो। और कोई सद्गुरू तुम्हारे द्वार पर दस्तक दे देगा। या कि तुम अनायास, जिसमें कभी सद्गुरू नहीं देखा था, उसमें सद्गुरू को पहचान लोगे। कभी-कभी ऐसा होता है कि तुम्हारे पड़ोस में ही मौजूद था और तुमने सुना ही नहीं। तुम रोज रास्ते पर मिलते-जुलते थे, जयरामजी भी होती थी, और फिर भी तुम्हें दिखाई नहीं पड़ा।
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