बहुत समय पहले की बात है। पहाड़ों से घिरे एक छोटे-से गाँव में हरिनाम सेठ रहता था। सेठ बड़ा धनवान था, उसके घर में अनाज के कोठार भरे रहते, सोने-चाँदी के बर्तन चमकते, नौकर-चाकरों की भरमार रहती। फिर भी सेठ की आँखों में नींद नहीं थी। दिन-रात उसका मन यही सोचता रहता— “और धन कैसे कमाऊँ? और खजाना कैसे भरूँ?”
एक दिन गाँव में एक महात्मा पधारे। सफेद दाढ़ी, तेजस्वी नेत्र और मृदु मुस्कान। लोग उन्हें घेरकर उपदेश सुनने लगे। जब यह बात सेठ तक पहुँची तो उसके मन में लालच जग उठा—
“क्यों न मैं इन संत से पूछूँ कि और जल्दी धन कैसे बढ़ाया जा सकता है।”
रात होते ही सेठ भारी थाल में फल-फूल और मिठाई लेकर संत के पास पहुँचा।
सेठ ने झुककर कहा: “महाराज! मेरे पास सबकुछ है, फिर भी मन अशांत है। कृपा करके मुझे धन कमाने का कोई आसान उपाय बताइए।”
संत ने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा।
संत बोले: “सेठ, धन का उपाय जानना है तो पहले यह समझो कि धन केवल तिजोरी में पड़ा सोना नहीं है। असली धन वह है जो सुख और सम्मान के साथ बढ़े।”
सेठ अधीर होकर बोला— “महाराज! यह सब ठीक है, पर मैं चाहता हूँ कि मेरा खजाना और जल्दी भरे।”
संत ने एक पल आँखें मूँदीं और फिर तीन उँगलियाँ उठाकर बोले— “धन कमाने के तीन आसान उपाय हैं—
ईमानदारी की कमाई – जैसे दूध से घी निकलता है, वैसे ही सच्ची मेहनत से स्थायी धन निकलता है। झूठ और धोखे से पाया धन रेगिस्तान की मृगतृष्णा है, जो पल में मिट जाता है।
संयमित खर्च – जिसको खर्च करने की समझ नहीं, उसके पास चाहे लाख हों, वह कंगाल ही रहता है। जरूरत भर खर्च करो और बाकी बचाकर रखो, तभी खजाना बढ़ेगा।
दान और सेवा – जो धन दूसरों की मदद में लगता है, वही अमृत बनकर लौटता है। जैसे खेत में बोया बीज कई गुना होकर लौटता है, वैसे ही दान किया धन जीवन में सुख और सम्मान लाता है।”
सेठ ध्यान से सुनता रहा। उसकी आँखें भर आईं।
सेठ ने कहा: “महाराज! अब तक मैं सोचता था कि धन केवल जोड़ने से बढ़ता है। आज समझा कि धन तो बाँटने से ही सुरक्षित और फलदायी होता है।”
उस दिन से सेठ का जीवन बदल गया। उसने अनाज के भंडार से गरीबों में दान देना शुरू किया, व्यापार में ईमानदारी बरतने लगा और खर्च में संयम रखने लगा। धीरे-धीरे उसका नाम दूर-दूर तक फैल गया। लोग उसे केवल अमीर ही नहीं, बल्कि “दयालु सेठ” कहने लगे।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, धन कमाने का सबसे आसान और सच्चा तरीका है— ईमानदारी से कमाना, संयम से खर्च करना और दान से धन को पवित्र करना। यही तीन बातें धन को स्थायी भी बनाती हैं और सुख भी देती हैं।