धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 667

अयोध्या में राजतिलक की तैयारी थी। श्रीराम युवराज बनने वाले थे। हर कोई प्रसन्न था। लेकिन जैसे ही कैकेयी ने दो वर माँगे— राम का वनवास और भरत का राज्याभिषेक—तो पूरा राजमहल हिल गया।

श्रीराम को यह समाचार मिला। लोग सोचते थे कि वे विरोध करेंगे, रोष करेंगे या कम से कम समझौते की कोशिश करेंगे। परंतु श्रीराम ने शांत मुख से कहा— “पिताजी ने वचन दिया है, उसे निभाना मेरा धर्म है। मुझे राज नहीं, अपने कर्तव्य की रक्षा करनी है।”

राम ने राज्य, सुख-सुविधा, ताज और सिंहासन त्याग दिया, लेकिन विश्वास, कर्तव्य और सत्य नहीं छोड़ा। इसी कारण वे “मर्यादा पुरुषोत्तम” कहलाए।

बिज़नेस लाइफ में यह घटना काफी सार्थक है। आज के बिज़नेस वर्क में भी श्रीराम की यह लीला बहुत गहरी सीख देती है।

Commitment ही सबसे बड़ा Capital है

बिज़नेस में क्लाइंट या पार्टनर से किया वादा तोड़ दिया जाए तो साख (reputation) खत्म हो जाती है।

राम ने राज्य त्यागकर भी वचन निभाया, इसी तरह बिज़नेस में “डेडलाइन”, “क्वालिटी” और “प्रॉमिस” निभाना ही असली पूंजी है।

शॉर्ट-टर्म प्रॉफिट से ज्यादा लॉन्ग-टर्म रिलेशनशिप ज़रूरी है

राम चाहते तो राजगद्दी ले सकते थे (शॉर्ट-टर्म फायदा)। लेकिन उन्होंने भरोसा चुना (लॉन्ग-टर्म वैल्यू)। बिज़नेस भी वही टिकता है जहाँ लोग भरोसा कर सकें।

संकट में भी संतुलन रखना ही असली नेतृत्व है

राम ने क्रोध नहीं किया, टीम (परिवार, प्रजा) को शांति का संदेश दिया। बिज़नेस लीडर को भी क्राइसिस में धैर्य और क्लैरिटी रखनी चाहिए।

नैतिकता (Ethics) से ही ब्रांड बनता है

राम के चरित्र ने उन्हें भगवान बना दिया। वैसे ही बिज़नेस में नैतिकता (Ethics) ही ब्रांड को भगवान-सा सम्मान दिलाती है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, श्रीराम की लीला हमें सिखाती है कि व्यापार में सबसे बड़ा धन विश्वास है। राजसिंहासन छोड़ने वाले राम का नाम आज भी राजाओं के ऊपर है, और बिज़नेस में भी वही कंपनी या व्यापारी लंबे समय तक टिकता है जो वचन, विश्वास और मूल्य (Values) से कभी समझौता नहीं करता।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

स्वामी राजदास : शत्रु पर विश्वास मत करो

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—64

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—317