धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 690

एक समय की बात है। हिमालय की तलहटी में बसे एक छोटे से गाँव में एक संत रहा करते थे। लोग उन्हें स्वामी अनंतदास कहते थे। उनका स्वभाव अत्यंत शांत और वाणी मधुर थी। दूर-दूर से लोग अपनी समस्याएँ लेकर उनके पास आते — कोई धन की चिंता लेकर, कोई परिवार के झगड़े से, तो कोई असफलता से निराश होकर।

एक दिन दोपहर के समय एक युवा किसान उनके आश्रम पहुँचा। चेहरा झुका हुआ था, आँखों में निराशा थी। उसने संत के चरणों में सिर झुकाकर कहा — “गुरुदेव, मैं बहुत कोशिश करता हूँ, पर हर बार असफल हो जाता हूँ। खेती में मेहनत करता हूँ, पर फसल खराब हो जाती है। कभी व्यापार करता हूँ, तो घाटा हो जाता है। अब तो लगता है, मेरे भाग्य में सफलता लिखी ही नहीं।”

संत ने शांत स्वर में पूछा — “पुत्र, क्या तू यह मान चुका है कि तेरे लिए सब असंभव है?”

युवक ने सिर झुका लिया — “जी हाँ, गुरुदेव। अब मुझमें प्रयास करने की शक्ति नहीं बची।”

संत मुस्कुराए और बोले — “चलो मेरे साथ। मैं तुझे कुछ दिखाना चाहता हूँ।”

दोनों पास ही बहती एक छोटी नदी के किनारे पहुँचे। वहाँ एक विशाल पत्थर पड़ा था। संत ने कहा — “इस पत्थर पर बैठ जा और इस पर एक शिवलिंग बनाने का प्रयत्न कर।”

युवक चौंका — “गुरुदेव, मेरे पास न औज़ार हैं, न अनुभव। मैं कैसे बना पाऊँगा?”

संत बोले — “बस शुरुआत कर, बाकी मैं देख लूँगा।”

युवक ने एक पुरानी छेनी और हथौड़ा उठा लिया। वह पत्थर पर प्रहार करने लगा। कुछ ही देर में उसके हाथ छिल गए, हथेलियों से खून निकल आया। वह थककर बोला —
“गुरुदेव, यह पत्थर बहुत कठोर है। मैं हार गया।”

संत मुस्कुराए और बोले — “पुत्र, क्या तूने पूरे दिल से कोशिश की?”

“जी हाँ, पर सफलता नहीं मिली।”

संत बोले — “याद रख, जब कोई बीज धरती में बोया जाता है, तो तुरंत अंकुर नहीं निकलता। उसे पानी, धूप और धैर्य चाहिए। अगर किसान पहले ही दिन हार मान ले, तो क्या फसल उगेगी?”

युवक सोच में पड़ गया। उसने फिर से छेनी उठाई और वार करने लगा। कई दिन बीत गए। धीरे-धीरे पत्थर में हल्की रेखाएँ बनने लगीं। गाँव के लोग मज़ाक उड़ाते— “यह क्या करेगा इस बेकार पत्थर से? समय बरबाद कर रहा है।”

लेकिन युवक ने संत के वचन याद रखे — “जो हार मानता है, वही असफल होता है।”

महीनों की मेहनत के बाद एक दिन सुबह-सुबह जब सूर्य की किरणें नदी के जल पर पड़ीं, तो वह कठोर पत्थर एक सुंदर शिवलिंग में बदल चुका था। उसकी चमक देखकर गाँव वाले भी दंग रह गए।

संत अनंतदास मुस्कुराते हुए बोले — “देख पुत्र, तूने वही काम कर दिखाया जिसे पहले तू असंभव मानता था। फर्क बस इतना था कि पहले तू आधे मन से प्रयास कर रहा था, और अब पूरे मन से।”

युवक ने आँसुओं से भरी आँखों से कहा — “गुरुदेव, अब मुझे समझ आ गया — कोई काम असंभव नहीं होता, बस हमारा धैर्य और विश्वास कमजोर हो जाता है।”

संत बोले — “सही कहा तूने। याद रखो — असंभव वह शब्द है, जिसे मनुष्य ने अपनी आलस्य के लिए बना लिया है। जो निरंतर प्रयास करता है, उसके लिए पत्थर भी झुक जाता है, और किस्मत भी।”

उस दिन के बाद वह युवक गाँव के सबसे सफल किसानों में गिना जाने लगा। उसने अपने खेतों में वही धैर्य और निरंतरता लगाई जो उसने पत्थर पर लगाई थी, और उसकी मेहनत ने असंभव को संभव बना दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, असंभव कुछ नहीं होता, बस मनुष्य का विश्वास डगमगा जाता है। कोशिश करने वाला कभी असफल नहीं होता, क्योंकि हर कोशिश हमें मंज़िल के एक कदम और करीब ले जाती है। हार सिर्फ वही मानता है, जिसने प्रयास करना छोड़ दिया।

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