एक बार एक छोटे से गाँव में संत आनंददास रहते थे। वे अपने शिष्यों को हमेशा यही सिखाते थे — “जो मनुष्य सोच सकता है, वह कर भी सकता है। क्योंकि असंभव केवल मन की कल्पना है, सत्य नहीं।”
एक दिन उनका एक शिष्य गोपाल उनके पास आया और बोला, “गुरुदेव, मैं बहुत गरीब हूँ। मेरे घर में अनाज नहीं, साधन नहीं। मैं बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ, पर यह असंभव लगता है।”
संत मुस्कराए और बोले, “गोपाल, असंभव तो केवल वह सोच है जो कोशिश करने से डरती है।
तू कल सुबह सूर्योदय के समय आना, मैं तुझे एक बीज दूँगा।”
अगले दिन गोपाल आया। संत ने उसे एक साधारण सा बीज दिया और बोले, “इस बीज को रोप और इसकी सेवा कर। पर ध्यान रहे—जितनी श्रद्धा और विश्वास तू इसमें रखेगा, उतना ही बड़ा यह पेड़ बनेगा।”
गोपाल ने बीज लगाया। शुरुआत में बीज अंकुरित नहीं हुआ। गाँव के लोग हँसने लगे— “अरे गोपाल, संत ने तुझे धोखा दिया!”
लेकिन गोपाल रोज़ पानी देता रहा, उसे सूर्य की ओर रखता, उससे बात करता—“तू जरूर उगेगा।”
कुछ दिन बाद अंकुर फूटा, और सालों में वह विशाल वटवृक्ष बन गया। उसी पेड़ की छाँव में गोपाल ने एक छोटा व्यापार शुरू किया—लकड़ी और औषधि का। धीरे-धीरे उसका व्यापार बढ़ा और वह गाँव का सफल व्यापारी बन गया।
अब वह संत के पास आया, तो बोला, “गुरुदेव, आपने मुझे चमत्कारिक बीज दिया था।”
संत हँसकर बोले, “चमत्कार बीज में नहीं था, तेरे विश्वास में था। जिस दिन तूने यह सोच लिया कि यह बीज उगेगा, उसी दिन तूने सफलता का बीज अपने भीतर बो दिया था।”
फिर संत ने सबको समझाया— “मनुष्य का हर महान कार्य पहले उसके विचार में जन्म लेता है।
जो सोच सकता है, वह कर सकता है — बस विश्वास, धैर्य और कर्म चाहिए।”
और गोपाल का जीवन उस बात का जीवित प्रमाण बन गया कि — “जो हम सोच सकते हैं, वो हम कर भी सकते हैं।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सच्चाई ये है इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है। जो हम सोचते है—वो हम कर भी सकते हैं। ये ही हकीकत है। बस, आपमें धैर्य, श्रद्धा, विश्वास, लग्न और मेहनत करने की शक्ति होनी चाहिए।