धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—697

एक दिन एक संत अपने आश्रम में बैठे थे। उनके पास एक युवक आया, जिसका चेहरा निराशा से भरा था। उसने कहा, “गुरुदेव, मेरा सपना बड़ा है, पर मेरे पास न धन है, न साधन, न कोई सहारा। मैं इतिहास कैसे रचूं?”

संत मुस्कुराए और बोले, “बेटा, इतिहास लिखने के लिए कलम की नहीं, हौसलों की जरूरत होती है।”

युवक ने चौंककर पूछा, “गुरुदेव, बिना कलम के इतिहास कैसे लिखा जा सकता है?”

संत बोले, “राम के पास कोई सेना नहीं थी, फिर भी उन्होंने रावण जैसे साम्राज्य को हरा दिया।
हनुमान के पास कोई किताब नहीं थी, फिर भी उन्होंने समर्पण और शक्ति का इतिहास रचा।
मीरा के पास कोई पदवी नहीं थी, पर उन्होंने प्रेम की ऐसी गाथा लिखी जो आज भी गाई जाती है। इन सबने कलम नहीं, हौसले से लिखा इतिहास।”

फिर संत ने कहा, “जिस दिन मनुष्य अपने डर पर विजय पा लेता है, उसी दिन उसका हौसला इतिहास बन जाता है।

कलम तो शब्द लिखती है, पर हौसला कर्म लिखता है — और कर्म का इतिहास अमर होता है।”

युवक ने संत के चरणों में सिर झुकाया और बोला, “गुरुदेव, अब मैं कलम नहीं, अपने हौसलों से इतिहास लिखूंगा।”

संत बोले, “जा बेटा, याद रख — जो हिम्मत रखता है, वही अमर पंक्तियाँ रचता है।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, “जो हार से नहीं डरता, वही इतिहास रचता है। क्योंकि कलम शब्द मिटा सकती है, पर हौसले कर्म अमर कर देते हैं।”

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