एक दिन एक गुरु ने अपने शिष्यों को शिक्षा देने के लिए एक बड़ा कांच का जार निकाला।
उन्होंने उसमें बड़े-बड़े पत्थर डाले और पूछा, “क्या जार भर गया?”
शिष्य बोले — “जी हाँ, भर गया।”
गुरु ने फिर उसमें छोटे कंकड़ डाले। वे पत्थरों के बीच की जगह में समा गए।
गुरु मुस्कुराए — “अब?”
शिष्य बोले — “अब पूरी तरह भर गया।”
गुरु ने अब उसमें रेत डाली। रेत ने बाकी जगह भर दी।
सभी बोले — “अब तो सच में भर गया!”
गुरु ने अंत में उसमें पानी डाल दिया। पानी भी समा गया। सभी हैरान रह गए।
गुरु बोले — “यह जार तुम्हारा जीवन है।
बड़े पत्थर हैं — परिवार, स्वास्थ्य, समय और ईश्वर।
कंकड़ हैं — काम और रिश्ते,
रेत है — पैसा, वस्तुएँ और मनोरंजन।”
“अगर तुम पहले रेत भरोगे तो बड़े पत्थरों के लिए जगह नहीं बचेगी। इसी तरह, अगर जीवन की छोटी-छोटी चीजों में उलझ जाओगे, तो जो सच में ज़रूरी है — उसके लिए समय नहीं रहेगा।”
शिष्य नतमस्तक हो गए।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, पहले जीवन में मुख्य चीजों को जगह दो — परिवार, सेहत, और आत्मिक शांति। बाकी सब अपने स्थान पर अपने आप ठीक बैठ जाएगा।








