एक दिन एक युवक संत के पास आया और बोला, “गुरुदेव, मैं बहुत मेहनत करता हूँ, पर बिजनेस में सफलता नहीं मिलती। कौन-सी रणनीति अपनाऊँ?”
संत मुस्कुराए और बोले, “बेटा, तूने कभी हनुमान जी की भक्ति का रहस्य समझा है?”
युवक बोला, “मैं रोज़ मंगलवार को पूजा करता हूँ, पर भक्ति का रहस्य?”
संत बोले, “हनुमान जी केवल बल और भक्ति के प्रतीक नहीं, वे परफेक्ट बिजनेस मैनेजर भी हैं। देख—जब भी काम मिला, उन्होंने पूरा ध्यान रामकाज पर लगाया। न लाभ देखा, न हानि; बस लक्ष्य पर फोकस रखा। यही है ‘डेडिकेशन’, जो आज हर बिजनेस की पहली ज़रूरत है।”
फिर संत ने आगे कहा, “हनुमान जी ने कभी खुद को राम से बड़ा नहीं माना, बल्कि राम के आदेश में ही अपनी शक्ति का उपयोग किया।
आज के बिजनेस में यही ‘टीमवर्क’ और ‘लीडरशिप’ है—जहाँ अहंकार नहीं, समर्पण चलता है।
जो अपनी कंपनी, ब्रांड या ग्राहकों को भगवान का रूप मानकर सेवा करता है, वही असली सफलता पाता है।”
युवक बोला, “गुरुदेव, तो क्या भक्ति और बिजनेस साथ चल सकते हैं?”
संत ने मुस्कुराते हुए कहा, “भक्ति अगर निष्ठा है, तो बिजनेस उसका परिणाम है। हनुमान की तरह काम में श्रद्धा रखो, टीम के प्रति विनम्र रहो, और ग्राहकों की सेवा को सेवा भाव से करो—देखना, लाभ अपने आप जुड़ जाएगा। क्योंकि जब कार्य में भक्ति आ जाए, तो हर सौदा ‘सेवा’ बन जाता है, और हर ग्राहक ‘राम का दूत’। यही है आधुनिक युग का हनुमान सूत्र।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, “जहाँ भक्ति में कर्म हो और कर्म में सेवा—वहीं बिजनेस में सफलता स्थायी होती है।”









