धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—713

एक गाँव में हरिनाम दास नाम के एक संत रहते थे। उनका स्वभाव बहुत सरल था, परंतु लोगों के स्वभाव को पहचानने में वे बड़े पारखी थे।

एक बार गाँव में अकाल पड़ा। कई परिवारों के पास खाने तक का अनाज नहीं बचा था। तब एक धनवान व्यापारी ने लोगों की “मदद” के नाम पर उन्हें अनाज और पैसे उधार देने शुरू किए — पर ब्याज पर। वह कहता, “मैं तो तुम्हारी सहायता कर रहा हूँ, पर थोड़ी-सी ब्याज तो लेनी ही पड़ेगी।”

लोग मजबूर थे, उन्होंने उसकी शर्तें मान लीं। कुछ महीनों बाद जब हालात सामान्य हुए, तो व्यापारी ब्याज सहित पैसा वसूलने निकल पड़ा। गरीबों के आँगन से उसकी आवाज़ गूंजती —“मैंने तुम्हारी मदद की थी, अब मेरा हक़ लौटा दो!”

एक दिन संत हरिनाम दास उस रास्ते से गुज़रे। उन्होंने देखा कि व्यापारी एक विधवा के घर पर चिल्ला रहा है क्योंकि वह ब्याज नहीं चुका पा रही थी।
संत ने मुस्कुराकर कहा, “भाई, तू मदद कर रहा था या व्यापार?”

व्यापारी बोला, “संत जी, मैंने तो नेक काम किया। भूखे लोगों को पैसा दिया।”

संत बोले, “नेकी वो होती है, जो लौटकर धन्यवाद लेती है, ब्याज नहीं। अगर तू किसी की मजबूरी में लाभ ढूँढता है, तो तू मदद नहीं, सौदा कर रहा है। अपने ही लोगों से ब्याज वसूलने वाला व्यक्ति कभी सुख नहीं पा सकता — क्योंकि उसका दिल व्यापार में उलझा है, दया में नहीं।”

व्यापारी चुप हो गया।
संत ने कहा, “सच्ची मदद वही है जिसमें लेने की इच्छा न हो, बस देने का भाव हो।”

उस दिन के बाद व्यापारी ने ब्याज माफ़ कर दिया और गरीबों की मदद निस्वार्थ भाव से करने लगा। धीरे-धीरे उसके घर में भी सुख-शांति लौट आई।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जो अपने ही लोगों की मदद पर ब्याज मांगता है, वह दिल का अमीर नहीं, गरीब होता है। सच्ची नेकी वही है जो बिना स्वार्थ के की जाए। ब्याज पर की गई मदद सच्चे अर्थ में मदद नहीं—व्यापार होता है।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—145

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—467

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—22

Jeewan Aadhar Editor Desk