धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 711

बहुत समय पहले की बात है। गुरु नानक देव जी अपने कुछ शिष्यों के साथ उत्तर भारत के एक गाँव की ओर जा रहे थे। सर्दियों की सुबह थी। रास्ते में हवा में ठंडक थी, पेड़ों पर ओस की बूँदें चमक रही थीं, और पक्षियों का कलरव वातावरण को पवित्र बना रहा था।

गुरु नानक जी धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहे थे, और उनके होठों पर वही अमर वाणी थी — “एक ओंकार सतनाम…”

रास्ते में उन्हें कुछ लोग दिखाई दिए जो हँसते हुए एक बकरी को खींचकर ले जा रहे थे।
बकरी भय से काँप रही थी, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।

गुरु जी रुके। उन्होंने प्रेमपूर्वक पूछा — “भाइयों, यह बकरी कहाँ ले जा रहे हो?”

उनमें से एक ने कहा — “महाराज, आज हमारे गाँव में एक बड़ा भोज है। यह बकरी भगवान को चढ़ाई जाएगी।”

गुरु जी ने शांत स्वर में कहा — “भगवान को चढ़ाई जाएगी या भगवान की रचना की बलि दी जाएगी?” ये सुनते ही सब चुप हो गए।

गुरु जी आगे बोले — “क्या तुम सोचते हो कि भगवान खुश होगा जब उसकी बनाई हुई एक जीवात्मा पीड़ा में तड़पेगी? क्या वह भगवान, जो सबमें वास करता है — बकरी में भी, इंसान में भी — उसकी हत्या देखकर प्रसन्न होगा?”

लोगों ने कहा — “पर यह तो हमारी पुरानी परंपरा है, हम ऐसा हमेशा करते आए हैं।”

गुरु नानक देव जी ने मुस्कुराते हुए कहा — “अगर कोई परंपरा किसी की आँखों से आँसू निकालती है, तो वह धर्म नहीं — अधर्म है। सच्चा धर्म वह है जो किसी के आँसू पोंछे।”

फिर उन्होंने आगे बढ़कर बकरी के सिर पर हाथ रखा। बकरी शांत हो गई।

गुरु जी बोले — “देखो, यह भी तो उसी परमात्मा की संतान है, जैसे तुम हो। जब यह डर में काँपती है, तो परमात्मा का हृदय भी काँपता है।”

उनके शब्दों में ऐसी करुणा थी कि गाँव के लोगों का हृदय पिघल गया। किसी ने धीरे से रस्सी खोल दी। बकरी भागकर हरी घास पर मिमियाने लगी। गुरु जी की आँखें प्रसन्नता से चमक उठीं।

उन्होंने सबको समझाया — “मनुष्य बड़ा नहीं होता जब वह किसी जीव पर अधिकार जमाए, बल्कि जब वह किसी जीव पर दया करे। दया ही धर्म का मूल है, दया ही जीवन का सौंदर्य है।”

लोगों ने उस दिन से प्रतिज्ञा की — अब किसी जीव की हत्या नहीं करेंगे। गाँव में सबने मिलकर वृक्ष लगाए, गायों और पशुओं की सेवा शुरू की। धीरे-धीरे वह गाँव करुणा, सेवा और प्रेम का केंद्र बन गया।

लोग कहते थे — “यह वही गाँव है, जहाँ गुरु नानक जी ने बकरी को जीवन दिया और मनुष्यों को सच्चे धर्म का अर्थ सिखाया।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, दया ही सच्चा धर्म है। ईश्वर की पूजा मूरतों में नहीं, जीवों के प्रति प्रेम में है। जहाँ करुणा है, वहीं भगवान का वास है। मनुष्य तभी श्रेष्ठ है जब वह किसी को भय नहीं, सुरक्षा दे।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—345

सत्यार्थप्रकाश के अंश—53

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—495