ऑक्सीजन लेवल 18 था, फेफड़ों में पानी भर चुका था और कोरोना संक्रमण की पुष्टि भी थी, अच्छे भोजन, योग और सकारात्मक सोच से महज 10 दिन में करोना को हराकर दोबारा से शिवांगी पाठक का मिशन शुरू
दुआओं के साथ बुलंद हौसले और आयुर्वेद से दी करोना को मात, माउंट लहोत्से पर फिर शुरू की चढ़ाई
हिसार,
माउंट लहोत्से की चढ़ाई शुरू करने निकली हिसार की पर्वतारोही शिवांगी पाठक की अपने मिशन के दौरान तबीयत खराब हो गई। ऑक्सीजन लेवल 18 पर आ गया, फेफड़ों में पानी भर गया और कोरोना संक्रमण की पुष्टि भी थी लेकिन अच्छे भोजन, योग और सकारात्मक सोच से महज 10 दिन में कोरोना को हराकर शिवांगी ने दोबारा से अपना मिशन शुरू कर दिया।
शिवांगी पाठक की माता आरती पाठक व पिता राकेश पाठक ने बताया कि गत 9 अप्रैल को पर्वतारोही शिवांगी पाठक को वे खुशी-खुशी नेपाल छोड़ कर आए थे और उसने उसी दिन से अपनी माउंट लहोत्से की चढ़ाई शुरू कर दी थी। अगले दिन 10,11,12,13 और 14 अप्रैल को चढ़ाई करते-करते जो लुक्ला से स्टार्ट होता है, 15 अप्रैल को वह लोबुचे पहुंच गई जोकि बेस कैंप से एक कैंप नीचे है। शिवांगी की माता आरती पाठक ने बताया कि एक रात वहां रुक कर अगले दिन बेस कैंप से नीचे गोरख शेप पहुंचकर उसने फोन किया कि मम्मी मेरी तबीयत काफी खराब हो रही है मेरा बुखार नहीं उतर रहा और मुझे खाना भी नहीं पच रहा है। उसे मैंने दवाइयां लेने के लिए बोला, दवाइयां लेकर वह जैसे तैसे बेस कैंप जोकि 5364 मीटर की हाइट पर है, पहुंच गई। अगले दिन एक रात वहां रुकी किन्तु सुबह शिवांगी की हालत काफी खराब होनी शुरू हो गई तो एजेंसी वालों का फोन आया कि शिवांगी का रेस्क्यू करवाना पड़ेगा और 19 अप्रैल को सुबह 11 बजे शिवांगी का रेस्क्यू कर उसे काठमांडू हॉस्पिटल लाया गया। उसका रेस्क्यू इसलिए करवाना पड़ा क्योंकि उसका ऑक्सीजन लेवल 18 पर आ गया था जहां पर उसकी जांच पड़ताल होने पर पता लगा कि उसके फेफड़ों में पानी भर चुका है। उसे कोरोना संक्रमण की भी पुष्टि 19 अप्रैल को हुई तथा 20 अप्रैल को हम गोरखधाम ट्रेन से शिवांगी के पास शाम को 7 बजे काठमांडू पहुंच गए। वहां उसकी हालत बहुत खराब थी, वह शारीरिक रूप से तो बहुत कमजोर थी लेकिन मानसिक रूप से पहाड़ों जितनी शक्तिशाली लग रही थी।
आरती पाठक ने बताया कि शिवांगी की हिम्मत और जज्बा देखकर हमने उसका आयुर्वेद चिकित्सा की शुरूआत कर उसको एक होटल में ही आइसोलेट करवा लिया क्योंकि शिवांगी पूर्ण रूप से शाकाहारी है। वह चाहती थी कि वहां उसे अपनी मां के हाथ का खाना मिले। इसलिए वहां पर हम दोनों उसकी देखभाल अच्छे से करते रहे। हमने देसी काढ़ा व सारा ट्रीटमेंट शुरू कर दिया। तीन दिन शिवांगी की हालत बहुत खराब थी लेकिन चौथे दिन सबकी दुआओं व आशीर्वाद से उसे खाना पचना होना शुरू हो गया और खांसी में भी उसे कुछ आराम आ गया। उन्होंने बताया कि हमने शिवांगी से मिशन माउंट ल्होत्से को बीच में छोडक़र हमारे साथ भारत वापिस चलने के लिए आग्रह किया और कहा कि बेटी पहाड़ भी यहीं रहेंगे और अगर तुम ठीक रहोगी तो कभी दोबारा से यहां आ पाओगी लेकिन शिवांगी की हिम्मत और दृढ़ निश्चय ने हमें मजबूर कर दिया और हमने वहीं रह कर लगभग 12 दिन उसकी देखभाल की। वहां के डॉक्टर सम्राट और होटल के सारे स्टाफ की सहायता से शिवांगी 29 अप्रैल तक बिल्कुल ठीक हो गई और उसकी दोबारा से जांच की गई तो उसमें उसके फेफड़ों का इन्फेक्शन भी खत्म हो गया और वह कोरोना नेगेटिव हो चुकी थी। अब एक बार फिर से पहाड़ों की बेटी पहाड़ों पर जाकर माउंट लहोत्से को प्रणाम करना चाहती है और भारत की आन बान शान तिरंगे को उस चोटी पर लहराना चाहती है और ये बताना चाहती है कि अगर आपका विश्वास आपका जुनून सच्चा है तो कोई भी तकलीफ आपको अपने मिशन तक पहुंचने से नहीं रोक सकती। अब शिवांगी दोबारा से 8 मई को बेस कैंप पहुंच चुकी है और अब वह कैंप टू के लिए निकल चुकी है। उन्होंने बताया कि शिवांगी 25 मई तक माउंट ल्होत्से जो कि विश्व की चौथी सबसे ऊंची चोटी है जिसकी ऊंचाई 8516 मीटर है, उस पर तिरंगा लहरा देगी।