जियो के फंसे हैं जाल में,
बहुत काला है अब दाल में।
मुफ्त से थे हम सभी चले,
पर ये शातिर, ना थे बहुत भले।
अब धीरे धीरे रुपये छ सौ धरावे,
कुछ लोड नहीं होता, चकरी चलावे।
कब देखे वीडियो, बहुत अडिकां,
वो मुफ्त का मामला, अब है फीका।
एक ही संदेश, आपने आज का डाटा कर लिया यूज,
इसलिए गति धिमी करके उड़ा रहे हैं फोन का फ्यूज।
एक से एक ठगों से पड़ना है पाला,
इसलिए समझें नहीं, शुरू से था दाल में काला।
संदेश नहीं देख पाने पर दुखी हम है,
आते है संदेश, पर अपलोड ना होने का गम है।
अब यथा राजा तथा प्रजा,
सभी ऐजेंसी ठगी पर उतरी, बढ रहा कर्जा।
—कविवर कृष्णलाल काकड़
आदमपुर, हिसार