धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से-6

एक बार एक समुद्र के किनारे कुछ बच्चे रेत में खेल रहे थे | कोई दौड़ लगा रहा था, तो कोई फुटबाल से खेल रहा था। लेकिन समु्ंद्र के किनारे ज्यादातर बच्चे अपने अपने रेत के महल बना रहे थे | बाल्टी में ठसा ठस रेट भर कर – उसे रेतीले तट पर उलट देते – और अपनी उँगलियों से महल के दरवाज़े खिड़कियाँ तराशने लगते| हर साइज़ के महल देखे जा सकते थे – और तरह तरह के नक़्शे – किसी महल में तरह तरह की कंगूरेदार खिड़कियाँ – तो किसीके महल में साधारण सी ….

बच्चों के एक ग्रुप ने आपस में शर्त लगाई थी – कि किसका महल सबसे शानदार बनता है – और बाकायदा घडी की सुइयों से उनका महल बनाने का टाइम पहले से ही बांधा गया था| समय पूरा होने से कुछ दस मिनट पूर्व वोर्निंग बेल बजी – और फिर दस मिनट बाद समय समाप्ति की घंटी!! अब जज साहब (उनके माता पिताओं की ही एक टोली ) घूम घूम के सबके महल देखने लगे – पर जहां कुछ महल साधारण थे (जिस बच्चे में ज्यादा रेत उढेलने की या तो ताक़त न थी – या फिर इंटरेस्ट न था ) वहीँ बहुत से महल इतने शानदार थे कि किसीको भी दूसरे नम्बर पर रखना उसके रचनाकार का अपमान सा लगता| तो यह तय हुआ कि प्रथम पुरस्कार एक को न दे कर तीन बच्चों में बाँट दिया जाय – और द्वितीय पुरस्कार के तो खैर पांच विजेता थे!!! माता पिता तो यह निर्णय कर के अलग हो गए – परन्तु बच्चे तो फिर बच्चे हैं न – सामान रैंक वाले बच्चों में जंग छिड गयी – हर एक यही कहता … मेरा महल तुझसे अच्छा है -|

यही चलते शाम हो चली — और माता पिता के बुलाने पर बच्चे घर की ओर चले ….. महल वहीँ पड़े रह गए — अपनी सारी शानो शौकत को लिए – और जो बच्चे उन पर इतना लड़ झगड़ रहे थे- वे भूल ही गए उनके बारे में अपने असली घर पहुँच कर कौन रेत के पीछे छूटे घरों को याद करता -? कोई कॉमिक्स पढने लगा नहा धो कर – कोई टीवी देखने में मसरूफ हो गया – तो कोई कुछ देर पहले के दुश्मन के साथ कैरम खेलता नज़र आया ….
ओर यहाँ तट पर – जैसे ही शाम हुई – लहरों की ऊंचाई बढ़ने लगी – ओर आखिर लहरें महलों को बहा ले गयीं !!!

यह तो बच्चों की बात हुई – पर हमारे बारे में क्या? क्या हम सब ही यहाँ अपने असली घर को छोड़ कर रेत के महलों में नहीं उलझे? मेरा महल उससे बड़ा हो – इसी कोशिश में परेशान? असली घर को लौट कर इन महलों को भूल ही जाना है। हमारा असली घर तो परमधाम है। परमधाम में जाने के लिए हमें अभी से गुरु की शरण जाना पड़ेगा। वो ही हमें हमारे असली घर में जाने की राह बताऐंगे।

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