धर्म

स्वामी राजदास : अमृत की तालाश

मैंने सुना है कि सिकंदर उस जल की तालाश में था, जिसे पीने से लोग अमर हो जाते हैं। बड़ी प्रसिद्ध कहानी है उसके संबंध में। अमृत की तालाश में था। कहतें हैं कि दुनिया भर को जीतने के उसने जो आयोजन किए, वह भी अमृत की तालाश के लिए। और कहानी है कि आखिर उसने वह जगह पा ली। वह उस गुफा में प्रवेश कर गया, जहां अमृत का झरना है। आंनदित हो गया। जन्मों-जन्मों की, जीवन-जीवन की आकांक्षा की तृप्ति का क्षण आ गया। सामने कल-कल नाद करता हुआ झरना है। इसी गुफा की तालाश थी।
यहां क्लिक करे—स्कूली निबंध प्रतियोगिता..विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीतेंगे सैंकड़ों उपहार
झुका ही था कि अंजलि में भर ले अमृत को और पी जाए, अमर हो जाए, कि एक कौवा बैठा हुआ था गुफा के भीतर। वह जोर से बोला,ठहर,रूक यह भूल मत करना। सिंकदर ने कौवे की तरफ देखा। बड़ी दुर्गति की अवस्था में था कौवा। पहचानना मुश्किल था कि कौवा है-पंख झड़ गए थे,पंजे गिर गए थे, आंखे अंधी हो गयी थीं-ऐसा जीर्ण-शीर्ण उसने कौवा ही नहीं देखा था। बस,कंकाल था। सिकंदर ने पूछा, रोकने का कारण? और रोकने वाला तू कौन? नौकरी करना चाहते है, तो यहां क्लिक करे।
कौवे ने कहा,मेरी कहानी सुन लो। मैं भी अमृत की तालाश में था। और गुफा मुझे भी मिल गयी थी। और मैंने यह अमृत पीया। और अब मैं मर नहीं सकता। और अब मैं मरना चाहता हूं। देखो मेरी हालत। आंखे अंधी हो गयी हैं, देह जराजीर्ण हो गयी है,पंख झड़ गए हैं उड़ नहीं सकता,पैर गिर गए हैं ,गल गए हैं लेकिन मैं मर नहीं सकता। एक दफा मेरी तरफ देख लो। फिर तुम्हारी मर्जी हो तो अमृत पी लो। लेकिन अब मैं चिल्ला रहा हूं,चीख रहा हूं, कि मुझे कोई मार डाले। लेकिन मैं मर भी नहीं सकता, क्योंकि यह अमृत दिक्कत हो गया है। और अब प्रार्थना एक ही कर रहा हूं परमात्मा से कि कोई मुझे मार डालो, मुझे मार डालो। बस,एक ही आकांक्षा है कि किसी तरह मर जाऊं। अब मर नहीं सकता। रूक जाओ सोच लो एक दफा,फिर तुम्हारी मर्जी।जीवन आधार न्यूज पोर्टल को आवश्यकता है पत्रकारों की…यहां क्लिक करे और पूरी जानकारी ले..
और कहते है सिकंदर सोचता रहा। और चुपचाप गुफा से बाहर वापस लौट आया। उसने अमृत पिया नहीं।
तुम जो चाहते हो,अगर वह पूरा हो जाए तो भी तुम मुश्किल में पड़ोगे। अगर व पूरा न हो, तो तुम मुश्किल में पड़ते हो। तुम मरना नहीं चाहते। अगर हो जाए,गुफा मिल जाए तुम्हें और तुम अमृत पी लो,तो मुश्किल में पड़ोगे। क्योंकि तब-तब तुम पाओगे अब जी कर क्या करें? और जब जीवन तुम्हारे हाथ में था,जब तुम जी सकते थे, तब तुम अकांक्षा करते थे कि अमृत मिल जाए। क्योंकि जब मृत्यु है,तो जीएं कैसे? न मृत्यु के साथ जी सकते हो,न अमृत के साथ जी सकते हो। न गरीबी में जी सकते हो,न अमीरी में जी सकते हो। न नर्क में,न स्वर्ग में। और फिर भी तुम अपने को बुद्धिमान समझते हो।
जीवन आधार बिजनेस सुपर धमाका…बिना लागत के 15 लाख 82 हजार रुपए का बिजनेस करने का मौका….जानने के लिए यहां क्लिक करे

Related posts

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—28

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराजके प्रवचनों से—99

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से — 420