धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—52

एक बार नामदेव जब केवल पाँच साल के थे, तो उनके पिताजी को कहीं व्यापार के कार्य से कहीं बाहर जाना पड़ा। जाते समय नामदेव को बुलाया और कहा, बेटे, आज शाम को मैं देर से लौटूंगा, तो बिट्ठलनाथजी को दूध का भोग तुम लगा देना। देखो। भगवान शरमाते बहुत हैं, इसलिए आग्रह करना पड़ता है, अच्छा। सांय काल दूध का कटोरा भगवान् के सामने रखा। आँखे बन्द करके प्रार्थना की, लेकिन दूध तो ज्यों का त्यों रखा हैं, आँखे खोली और कहने लगे, भगवान् पिताजी से हर रोज दूध पी लेते हो, आज क्या बात है?

मुझसे कोई अपराध हो गया क्या? पाँच मिनिट फिर इन्तजार करता है और सोचता है कि कोई काम हो गया होगा? भगवान को फिर पुकारा और कहा , देखो भगवान् जल्दी आ जाओ और दुध पीते हो या नहीं? यदि तुम दूध नहीं पीओगे तो मंै अपना सिर फोड़ लूुंगा। ज्योंहि सिर पटकने को झूकने लगा त्योंहि भगवान प्रकट हो गए और प्रसन्न होकर कटोरा उठाया और पीने लगे।

जब इन्हें से नामदेव ने देखा कि भगवान् तो सारा दूध खत्म कर देंगे तो जोर से आवाज दी, भगवान सारा दूध पीओगे क्या? मुझे भी थोड़ा सा प्रसाद दो प्रभु। नामदेव का प्रेम और श्रद्धा से विट्ठलनाथ जी बड़े प्रसन्न हुए और प्यार से गोद में उठा लिया और अपने हाथों से नामदेव को दुध पिलाया।

धर्म प्रेमी आत्माओं। यदि प्रेम सच्चा है, श्रद्धा और विश्वास दृढ़ है तो इन्सान तो क्या भगवान् भी पिघल जाते हैं, जड़ चेतन बन जाता है। अत: सबसे प्यार करो। यदि प्यार न कर सको तो कोई बात नहीं परन्तु बैर किसी से मत करो।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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