हिसार

मुख्य अतिथि आने को मजबूर-बाकी सत्तापक्ष के लोग गीता जयंति महोत्सव से दूर

हिसार (राजेश्वर बैनीवाल)
यहां के पुराना राजकीय कॉलेज मैदान में चल रहे तीन दिवसीय गीता जयंती महोत्सव को दर्शकों व जन प्रतिनिधियों कमी अखर रही है। तीन दिनों के लिए बनाये गए मुख्य अतिथियों को छोड़ दें तो सत्तापक्ष के नेता व कार्यकर्ता ही इस आयोजन से दूरी बनाये हुए हैं, वहीं सत्तापक्ष का किया कार्यक्रम होने के कारण विपक्ष भी इसमें रूचि नहीं ले रहा है। हालत है कि जो व्यक्ति आयोजन में अतिथि बनकर बैठता है, वहीं कुछ देर बाद वक्ता बन जाता है और अपनी बात रखने के बाद चला जाता है। दर्शकों की यह कमी सबसे ज्यादा गीता महोत्सव में स्टॉल लगाने वाली विभिन्न संस्थाओं को अखर रही है।
यहां के पुराना राजकीय कॉलेज मैदान में तीन दिवसीय गीता जयंती महोत्सव का आयोजन किया गया है, जिसका शुभारंभ राज्यमंत्री डा. बनवारी लाल ने मंगलवार को किया वहीं अंतिम दिन चेयरमैन श्रीनिवासी गोयल मुख्य अतिथि होंगे। हालांकि तीनों दिन के मुख्य अतिथि सत्तापक्ष से जुड़े हुए हैं, लेकिन इन मुख्य अतिथियों के अलावा सत्तापक्ष के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने इस आयोजन से इस तरह दूरी बना रखी है जैसे शहर में कुछ हो ही नहीं रहा हो। बताया जाता है कि अब तक के दो दिनों में शहर का कोई भाजपा नेता या कार्यकर्ता इस आयोजन में शामिल होने नहीं पहुंचा, जिसे देखकर कहा जा सके कि यह आयोजन सत्तापक्ष के आह्वान पर हो रहा है। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
जन प्रतिनिधि भी आयोजन से दूर
हालांकि गीता जयंती समारोह के भव्य आयोजन व इसमें अधिक से अधिक भीड़ जुटाने के लिए प्रशासन पिछले कई दिनों से कदमताल कर रहा था लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात वाला रहा। पंचों, सरपंचों, जिला परिषद सदस्यों व पंचायत समिति सदस्यों को इस आयोजन के लिए न्यौता भेजा गया था। यही नहीं, सरपंचों व पंचों को अपने-अपने गांवों में प्रचार के लिए संबंधित एसडीएम व खंड विकास अधिकारी के माध्यम से प्रचार सामग्री भी भेजी गई थी लेकिन बताया जा रहा है कि जिले के पंचों, सरपचों, ब्लॉक समिति सदस्यों व जिला परिषद सदस्यों ने इस आयोजन में शामिल होने की जरूरत नहीं समझी।
गुजरात चुनाव की छाया भी महोत्सव पर
गीता जयंती महोत्सव पर गुजरात चुनाव की छाया भी सिर चढ़कर बोली। हालांकि यहां के भाजपाइयों का गुजरात में कोई आधार है ऐसा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन चुनाव के चलते लगी ड्यूटी की वजह से हिसार के विधायक डा. कमल गुप्ता सहित कुछ नेता गुजरात गये हुए हैं वहीं कुछ नेता अपने आकाओं के आगे नंबर बनाने के लिए बिना ड्यूटी के ही गुजरात में बताए जा रहे हैं। महोत्सव के प्रति सत्तापक्ष की बेरूखी का यह प्रमुख कारण माना जा रहा है वहीं जो नेता शहर में हैं, वे अपने ही कामकाज में मस्त है, उन्हें सत्तापक्ष का होने के बावजूद सरकारी आयोजन से लेना-देना नहीं है।
स्कूलों के बच्चे जमा रहे रंग, सरकारी फिर भी पिछड़े
गीता जयंती महोत्सव में विभिन्न निजी स्कूलों के बच्चे अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करके रंग जमा रहे हैं। कई अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के बच्चे भी हरियाणवी नृत्य करके आयोजन की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीं सरकारी स्कूल इस आयोजन में भी पिछड़े दिखाई दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि शिक्षा अधिकारियों की आयोजन के प्रति बेरूखी के कारण ही ऐसा सब हो रहा है। निजी स्कूलों के बच्चों द्वारा किये जा रहे आयोजन को वहां मौजूद दर्शकों द्वारा सराहा जा रहा है। नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।

दर्शकों की कमी का खामियाजा भुगत रहे स्टॉल
गीता जयंती महोत्सव के प्रति जनता की बेरूखी का खामियाजा महोत्सव में स्टॉल लगाने वालों को भुगतना पड़ रहा है। बड़े आयोजन के नाम पर स्टॉल लगाकर कमाई करने व अपनी बनाई वस्तुओं का प्रचार-प्रसार करने की सोच रही विभिन्न संस्थाओं को इस बार निराशा ही हाथ लगी। स्टाल पर इक्का-दुक्का दर्शकों का ही आना-जाना लगा रहता है, जबकि बाकी समय स्टाल पर बैठे लोग खाली बैठे दर्शकों की बाट जोहते रहते हैं।
शुद्धता के नाम पर धर्म गुरूओं के स्टाल पर महंगा सामान
गीता जयंती महोत्सव में विभिन्न धर्मगुरूओं की संस्थाओं ने भी स्टॉल लगाए हुए हैं, जहां हर चीज शुद्धता की कसौटी पर खरी बताई जा रही है। शुद्धता के नाम पर इन धर्मगुरूओं की स्टॉल पर मिलने वाले सामान का रेट बाजार मूल्य से अधिक मांगा जा रहा है, वहीं उपभोक्ताओं को फायदे के पर बताने पर अनेक वस्तुओं के बारे में कुछ नहीं कहा जा रहा जबकि बेचने वाले के लिए जरूर कुछ मार्जन बताया जा रहा है।
इस प्रकार जन-जन तक गीता का ज्ञान पहुंचाने व अन्य ज्ञानवर्धक बातों से जनता को रूबरू करवाने के उद्देश्य से हर जिला में लाखों रुपयों की लागत से आयोजित किये जा रहे गीता जयंती महोत्सव में सरकार को फटका लगना लाजिमी है। गीता जयंती महोत्सव के पीछे सरकार की मंशा भले ही बिल्कुल साफ व शुद्ध रही हो लेकिन इन आयोजनों को सिरे चढ़ाने वालों व सत्तापक्ष से जुड़े लोगों की वजह से आयोजन का उद्देश्य टायं-टायं फिस्स होकर रह गया।
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