कृष्ण ने कालिय नाग को नथकर यमुना के विषैले को अमृतमय बनाया। यह कालिय नाग तो 5000 वर्ष पूर्व द्वापर युग में हुआ, जिसका श्री कृष्ण ने उद्धार किया, परन्तु एक कालिय नाग अब भी हमारे अन्दर विराजमान है जो मुक्तिपथ में सबसे बड़ी बाधा है।
इस अहंकाररूपी नाग को जब तक निकल कर बाहर नहीं करोगे, तब तक कल्याण नहीं होगा। अत: प्यारे भाई बहिनो। कृष्ण नाम का सहारा लेकर इस अंहकार रूपी नाग को बाहर निकालो तथा अपने निश्छल और निर्मल मन से परमात्मा की भक्ति करो, तभी दुर्भल मानव जीवन सार्थक बन सकेगा। अहंकार कई प्रकार के होते हैं, इसके अनेक रूप हैं।
बड़पन का अंहकार, धन का अंहकार,सुन्दरता, परिवार का अंहकार तथा जवानी का अंहकार आदि। अंहकार किसी भी प्रकार का क्यों न हो, विनाशकारी ही होता है। एक कलश अमृत से भरा है यदि उसमें एक बूंद विष मिल जाए तो वह पूरे का पूरा अमृत विष बन जाता है,पीने के योग्य नहीं रहता, ठीक इसी प्रकार एक अंहकार रूपी नाग आपके सभी गुणों का विनाश कर सकता है,अत: अहंकार रूपी नाग पर नियत्रण रखो।
भगवान् श्रीकृष्ण ने सभी राक्षसों का वध किया,परन्तु कालिय नाग को नियंत्रित किया था, उसे विष रहित करके रमणिकद्वीप पर भेज दिया था। आप भी इन्द्रियों को शुद्ध करो और भक्ति रस में लीन करके हर क्षण संकीर्तन आदि से कृष्ण में लगाओ।
प्रिय भक्तात्माओं सभी को भगवान् एक बार अपनी दर्शन अवश्य देते हैं,परन्तु मानव अपने परमात्मा का दर्शन उसी रूप में करना चाहता है जो छवि उसने मन में बैठा रखी है, परन्तु परमात्मा किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं। मानव उनको पहचान नहीं पाता, यह मानव की अज्ञानता है।
सन्त नामदेवजी के पास भगवान् कुत्ते के रूप में आए और रूखी रोटियाँ लेकर ज्योंहि जाने लगे त्योंहि सन्त पीछे दौड़े और बोले भगवन् थोड़ा घी तो लगाने दो रोटियों पर, सूखी रोटियाँ कैसे खायेंगे?
इसलिए प्रमी सज्जनों सभी का आदर सत्कार करो, सब से प्यार करो। न जाने कौन सा वेष बनाकर भगवन् आ जाए।
इसलिए बन्धुओं कभी किसी से नफरत मत करना। अंहकार मत करना अंहकार का दमन करने के लिए कृष्ण का अपनी आँखों में बसा लो और परमात्मा से विनती करो।
बन्धुओं कालिस नाग के तो केवल मुख में ही विष था,परन्तु हमारी तो प्रत्येक इन्द्रिय,विषय-वासना रूपी विष से भरी हुई है। जब तक इन्द्रियां वासना रहित नहीं होती, तब तक भक्ति नहीं आ सकती। इस विष को समाप्त करने के लिए भक्ति रूपी औषधी का सेवन करो। साधु,सन्त, महात्मा ,सज्जन पुरूषों की संगति करोगे तो भक्ति रूपी बेल पल्लवित, पुष्पित और फलित होगी। भक्ति करना सरल नहीं है। जो भक्ति करना चाहता है उसे सर्वप्रथम मन और जिह्वा को वश में करना पड़ता है। जीभ का दास भक्ति कैसे कर पायेगा? जब तक जीव लौकिक रस के अधीन है, तब तक वह अलौकिक रस को नहीं पा सकता। अत:आलौकिक आनन्द को पाने के लिए कृष्ण-भक्ति करो।