मैं एक घर में मेहमान था-एक ग्रामीण घर में। अब तो बिजली आ गयी उस गांव में। बिजली जली,अब घर की बिजली है, खुद ही ग्रामीण ने जलायी और खुद ही सिर झुकाकर नमस्कार किया। मेरे साथ एक मित्र बैठे थे-पढ़े-लिखे हैं, डॉक्टर हैं। उन्होंने कहा: यह क्या पागलपन है? अब तो बिजली हमारे हाथ में है। अब तो यह कोई इन्द्र का धनुष नहीं है। अब तो यह कोई इन्द्र द्वारा लायी गई चीज नहीं है। यह तो हमारे हाथ में है,हमारे इंजीनियर ला रहे हैं। और तू खूद अभी बटन दबाकर इसको जलाया है।
वह ग्रामीण तो चुप रह गया। उसके पास उत्तर नहीं था। लेकिन मैंने उस डॉक्टरों को कहा कि उसके पास भला उत्तर न हो, लेकिन उसकी बात में राज हैं। और तुम्हारी बात में राज नहीं है। और तुम्हारी बात बड़ी तर्कपूर्ण मालूम पड़ती है। यह सवाल ही नहीं है कि बिजली कहां से आयी। कुल सवाल इतना है कि झुकने का कोई बहाना मिले तो चुकना मत। जिंदगी जितनी झुकने में लग जाये उतना शुभ है, क्योंकि उतनी ही प्रार्थना पैदा होती है। और जितने तुम झुकते हो उतना ही परमात्मा तुम में झांकने लगता है-झुके हुओं में ही झांकता है।
लेकिन सद्गुरू उधार नहीं हो सकता। तुम्हें प्रेम का अनुभव हो तो ही…। तुम हिन्दू घर मैं पैदा हुए,हिन्दू गुरू के पास गये कि चलो गांव में पुरी के शंकराचार्य आये हुए हैं। मगर तुम्हारा झुकाव सच्चा नहीं हो सकता,औपचारिक होगा। तुम हिन्दू की तरह झुके हो,व्यक्ति की तरह नहीं, एक आत्मवान सचेत चेतना की तरह नहीं,-हिन्दू की तरह। झुके रहे हो,क्योंकि पिता भी झुकते रहे थे,पिता के पिता भी झुकते रहे थे। झुक रहे हो,क्योंकि बचपन से सिखाया गया है कि झुको।
मैं छोटा था तो मेरे पिता को आदत है। घर में कोई भी आये बड़ा-बूढ़ा,कोई भी आये,वे सब बच्चों को बुलाकर कहें कि जल्दी झुको,पैर छुओ। मैंने उनसे कहा कि हम पैर तो छू लेते हैं,मगर हम झुकते नहीं। उन्होंने कहा मतलब? मैंने कहा: झुका हमें कोई नहीं सकता। यह तो बिलकुल जबर्दस्ती है। कोई भी ऐरागैरा-नत्थू खैरा घर में आ जाता है,और बस बुलाये कि चलो, झुको। उस दिन तो उनकी बात मेरी समझ में नहीं आती थी, अब समझ में आती है वह भी बहाना था। वह भी झुकना सिखाने का बहाना था। लेकिन उसमें हृदय नहीं हो सकता। क्योंकि मेरे भीतर कोई प्रति नहीं नहीं उमग रही थी,मेरे भीतर कोई श्रद्धा नहीं जन्म ले रही थी। तो शरीर झुक जायेगा।
पुरी के शंकराचार्य आ गये,तुम हिन्दू हो, तरे जा कर शरीर झुक जायेगा। कोई मौलवी आया,तुम मुसलमान हो, तो जाकर झुक जाओगे। मगर क्या तुम्हारा हृदय झुक रहा है? अगर हृदय नहीं झुक रहा है तो इस उपचार से कुछ भी न होगा। और इस उपचार में एक खतरा है कि कहीं तुम इसी उपचार में उलझे न रह जाओ और कहीं ऐसा न हो कि असली झुकने की जगह चूक जाये,तुम वहां जाओ ही नहीं।