धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—87

भूख सभी प्रणियों को लगती है चाहे वह छोटा कीट पंतग हो या बड़े से बड़ा हाथी,शेर,बाघ हो, दानव हो या मानव हो,भूख सभी को लगती है, इस भूख को शान्त करने के लिए सभी कर्मशील है,सभी कार्य करते हैं।

पक्षी गण प्रात:काल होते ही अपने-अपने घोसलों से दाने की खोज में निकल पड़ते हैं,पशु भी जंगलो में इधर-उधर से खाने की साम्रगी जुटाने में व्यस्त हो जाते हैं और मानव भी अपनी आजिविका के साधन जुटाने में व्यस्त हो जाते हैं।

पशु-पक्षी और मानव अपनी उदरपूर्ति करने की क्रिया में सब बराबर हैं,परन्तु इसमें थोड़ा सा अन्तर जरूर हैं- पशु-पक्षी को जैसा भोजन प्राकृतिक मिल जाता है,वैसा ही खाकर अपने पेट को भर लेते हैं। परन्तु मानव अपने स्वाद को बरकरार रखता हुआ उसे प्रकृति से फल अन्न आदि जो भी प्राप्त होता हैं,वह उसे स्वादिष्ट बना कर अपनी भूख को शान्त करना चाहता है। यह प्रक्रिया दोनों में समान पाई जाती है।

लेकिन मानव ने स्वाद के चक्कर में प्रकृति से मिले जीवनदायिनी भोजन को जहर बना दिया। अधिक उपज की चाहत में कीटनाशक का अत्यधिक प्रयोग करके स्वयं को कैंसर जैसे जानलेवा बिमारियों की आगोश में सौंप दिया है। घर के सात्विक भोजन के स्थान पर होटलों का खाना और विपरीत भोजन को बढ़ावा देकर घुटनों का दर्द, केलोस्ट्रोल और हार्ट के रोगों को बुलावा भेज रहा है।

सच्चाई ये है कि मानव ने पशु-पक्षियों की तुलना में अपने विकसित दिमाग से काफी कुछ हासिल किया लेकिन खाने में नए-नए प्रयोग करके स्वास्थ्य के क्षेत्र में वह पशु-पक्षियों के समक्ष पराजित हो गया।

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Jeewan Aadhar Editor Desk