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सत्यार्थ प्रकाश के अंश—27

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जैसे यह चन्द्रलोक सूर्य से प्रकासित होता है वैसे ही पृथ्वीव्यादि लोक भी सूर्य के प्रकाश ही से प्रकासित होते हैं। परन्तु रात और दिन सर्वदा वत्र्तमान रहते हैं क्योंकि पृथिव्यादि लोक घूम कर जितना भाग सूर्य के सामने आता है उतने में दिन और जितना पृष्ठ में अर्थात् आड़ में होता जाता है उतने में रात। अर्थात् उदय,अस्त,सन्ध्या,मध्यारात्रि आदि जितने कालावयव हैं वे देशदेशान्तरों में सदा वर्तमान रहते हैं अर्थात् जब अर्यावर्त में सूर्योदय होता है उस समय पाताल अर्थात् अमेरिका में अस्त होता है और जब आर्यावत्र्त में अस्त होता है तब पाताल में उदय होता है। जब आर्यावत्र्त में मध्य दिन वा मध्य रात है उसी समय पाताल देश में मध्य रात और मध्य दिन रहता है।
जो लोग कहते है कि सूर्य घूमता है और पृथिवी नहीं घुमती वे सब अज्ञ हैं। क्योंकि जो ऐसा होता तो कई सहस्त्रा वर्ष के दिन और रात होते। अर्थात् सूर्य का नाम है। यह पृथ्वी से लाखों गुणा बड़ा और करोड़ो कोश दूर है। जैसे राई के सामने पहाड़ घूमे तो बहुत देर लगती और राई के घूमने में बहुत समय नहीं लगता वैसे ही पृथिवी के घुमने से यथायोग्य दिन रात होते हैं,सूर्य के घूमने से नहीं। जो सूर्य को स्थिर कहते हैं वे भी ज्योतिविद्यावित् नहीं। क्योंकि यदि सूर्य न घूमता होता तो एक राशि स्थान से दूसरी राशि अर्थात् स्थान को प्राप्त न होता। और गुरू पदार्थ विना घूमें आकाश में नियत स्थान पर किसी नहीं रह सकता।
और जो जैनी कहते हैं कि पृथ्वी घूमती नहीं किन्तु नीचे-नीचे चली जाती है और दो सूर्य और दो चन्द्र केवल जम्बूद्धीप में बतलाते हैं वे तो गहरी भाग के नशे में निमग्र हैं। क्यों? जो नीचे-नीचे चली जाती तो चारों ओर वायु का स्पर्श न होता। नीचे वालों को अधिक होता और एक सी वायु की गति होती । दो सूर्य होते तो रास्ते तो राते और कृष्णपक्ष का होना ही नष्ट भ्रष्ट होता है। इसलिये एक भूमि के पास एक चन्द्र ,और अनेक चन्द्र,अनेक भूमियों के मध्य में एक सूर्य रहता है।
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