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जब बच्चा पैदा होता है ,न हिन्दु होता है न मुसलमान होता है। कोई बच्चा जनेऊ लेकर तो आता नहीं और न किसी बच्चे का खतना भगवान करता है। बच्चा भारतीय भी नहीं होता, पाकिस्तानी भी नहीं होता। बच्चे के पास कोई भाषा भी नहीं होती- न हिन्दी,न अंगे्रजी ,न मराठी,न गुजराती। यह कौन है? यह चैतन्य क्या हैं? यह निर्मल दर्पण क्या हैं? यह कहां से आ रहा हैं? यह बिना लिखी किताब हैं? इस पर अभी कुछ नहीं लिखा गया है, जल्दी ही आइडेन्टिटी कार्ड बनेगा, पासपोट बनेगा। जल्दी नाम-पता-ठिकाना लिख जायेगा। जल्दी इस आदमी को हम एक कोटि में रख देंगे कि यह कौन है। यह डॉक्टर हो जायेगा, इन्जीनियर हो जायेगा, दुकानदार हो जायेगा, इस राजनितिक पार्टी में सम्मिलित हो जायेगा,कम्युनिष्ट हो जायेगा,सोश्लिस्ट हो जायेगा। यह हजार चीजें हो जायेगा। इस क्लब का मेम्बर हो जायेगा,रोटेरियन हो जायेगा, लॉयन हो जायेगा- और न मालूम क्या-क्या हो जायेगा। और इसके चारों तरफ पर्दे-दर-पर्दे झूठी बातें जुडती चली जायेगी। और उन्हीं में यह खो जायेगा। और कभी यह प्रश्र भी नहीं उठेगा इसके भीतर कि आखिर मैं हूं कौन।
लोग इस प्रश्र को पूछते डरते हैं। और यह प्रश्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इस प्रश्र से महत्वपूर्ण और कोई प्रश्र नहीं है। और जिसने यह नहीं पूछा,उसने अपनी मनुष्यता की चुनौती स्वीकार नहीं की। आदमी कारण पूछ सकता है और नहीं पूछता,यही उसका अक्षम्य अपराध है,यही उसका पाप है।
ईसाई मूल पाप की चर्चा करते हैं। मैं इसी को मूल पाप कहता हूं- ओरिजनल सिन- जो तुम हो सकते हो, नहीं हो पाते। जो तुम पूछ सकते हो,पूछना ही था, जिसने पूछने में ही तुम्हारी नियति छिपी थी,वह भी नहीं पूछते। और सस्ते उत्तर बड़े सस्ते उत्तर ,दो कौड़ी के उत्तर सम्हालकर रख लेते हो। फिर उन पर लड़ते भी हो। मैं हिन्दू हूं,मैं पाकिस्तानी हूं- इस पर लाखों लोग मर जाते हैं। तुम्हें पता ही नहीं तुम कौन हो। लेकिन इन बातों पर लोग बड़ा आग्रह रखते हैं, क्योंकि घबराहट है। अगर ये बातें ढीली पड़ जायें तो शंका उठेगी भीतर कि मुझे मेरा तक पता नहीं है। तब भीतर एक ज्वालामुखी धधकेगा। और उससे बचना है। उससे बचने का सरल उपाय है- झंडा ऊं चा रहे हमारा। झंडे पर नजर रखो, नीचे देखो मत। झंड़ो झांड़ो में झगड़ा होने दो। पूछो ही मत कि यह झंडे को कौन पकड़े हुए है?
ये सब झंडे हैं-भारतीय,हिन्दू,मुसलमान,ईसाई। ये सब झंडे हैं। और इन्हीं के झंडो के झगड़ों में तुम खो गये हो।
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