धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—114

राम और रावण के बीच भंयकर युद्ध हुआ। विभीषण ने अंगुली नाभि में लगाकर इशारा किया। राम समझ गए कि रावण की नाभि में अमृत हैं। शिवजी का वरदान है कि जब तक नाभि में अमृत रहेगा, तब तक रावण को कोई नहीं मार सकता। यह बात केवल विभीषण जानता था, उसने ही यह राज श्रीराम को बताया तभी से यह कहावत प्रसिद्ध हो गई-
घर का भेदी लंका ढाए।
इसलिए धर्म प्रेमी सज्जनों । अपने भाई से कभी बैर मत करना, नहीं तो वही दशा होगी जो रावण की हुई। राम का बाण,राम का बाण चला,नाभि में बाण लगा, अमृत -घट टूट गया और रावण समाप्त हो गया।

विभीषण को लंका का राजा बनाया गया। श्रीरामजी ने स्वयं अपने हाथों से राज्य-तिलक किया। हनुमाज्जी ने माता सीताजी को राम की विजय का समाचार सुनाया। सीताजी की अग्रि परीक्षा की गई। इस प्रकार चौदह वर्ष का बनवास पूर्ण हुआ। सभी वानर सेना का सम्मान करके श्रीरामजी,लक्ष्मणजी तथा सीताजी सहित पुष्पक विमान पर सवार होकर आयोध्या की तरफ प्रस्थान किया। आयोध्या में समाचार भेजा गया। राम- आगमन सुनकर आयोध्यावासी खुशी से नाचने लगे और गाने लगे-
इस भक्त सवारी रघुवर की बनवास से आने वाली है।
बनवास लिखा था किस्मत में,यह बात तो होने वाली हैं।।

हनुामन जी भरत के पास आए, उस समय भरत जी पादुका की पूजा कर रहे थे और माँ सीता का जाप कर रहे थे,और कहा,भरतजी, श्रीराम,लक्ष्मण और माँ सीता पधार रहे हैं।

भरत जी शुभ समाचार सुनकर आनन्द विभोर हो गए और बाहर आए। भगवान को देखते ही प्रेम के उद्रेक से भरत जी का हृदय गद्गद् हो गया,नेत्रो में आंसू छलक आए, वे भगवान् के चरणों में गिर पड़े। श्रीराम ने जल्दी से भरत को अपनी बाहों में भर लिया। सबका मिलन हुआ, उस समय जो सबको आनन्द हुआ उसको परिभाषित करना असम्भव हैं।

गुरूदेवजी वशिष्ठजी ने श्रीराम को राज्यतिलक किया, राज मुकुट पहनाया, राज सिहांसन पर बैठाया। सभी ने मिलकर आरती उतारी तथा मंगल गीत गाए।

राम-राज्य का यश आज तक गाया जा रहा है। राम राज्य में कोई द्ररिद्र, रोगी, लोभी, झगड़ालू नहीं था। प्रजा हर तरह से सुखी थी। इस कलिकाल में यदि राम राज्य लाना चाहते हो तो प्रेम को दिल में बसाना सीखो,दूसरों की सेवा करना सीखो और स्वयं सन्मार्ग पर चलो तथा दूसरों को चलने की प्ररेणा दो,तभी राम-राज्य आ सकेगा।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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