धर्म

ओशो : कबीर

पंद्रह सौ ब्रह्मण सारे देश से एकत्रित हुए कबीर के संत्सग के लिए। कबीर तो जुलाहा थे, मुसलमान थे जन्म से तो। उनकी शूद्र से कोई ऊंची स्थिति नहीं थीं। शूद्र से गए-बीते थे। खूद उनके गुरू रामानंद ने, जो कि हिम्मतवर आदमी थे, उन तक ने इनकार कर दिया था कबीर को दीक्षा देने से- कि तू भई, हमें झंझट में डाल देगा।

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कबीर ने उनसे दीक्षा ली थी बड़े उपाय से,बड़ी कुशलता से। ऐसी दीक्षा पहले कभी हुई भी नहीं थी, रामानंद ने कई बार इनकार कर दिया कबीर को कि तू पहले आया ही मत कर, क्योंकि इससे हम झंझट में पड़ जाएंगे। यह ब्रह्मणों का गढ़ है काशी,और यहां मैं किसी जुलाहे को दे दूंगा दीक्षा, तो मुश्किल होगी। हिम्मतवर न रह होंगे।
तो कबीर गंगा के किनारे सीढ़ी पर,जहां रामानंद स्नान करने जाते रोज सुबह चार बजे, चाद ओढक़र पड़ रहे। अंधेरे में रामांनद का पैर पड़ गया कबीर पर। पैर पड़ गया तो कहा राम राम। और कबीर ने कहा:बस दे दिया मंत्र। हो गया मैं शिष्य आपका। आप मेरे गुरू हुए। अब राम-राम जपूंगा और पा लूंगा। और कबीर ने राम-राम जपकर पा लिए।
इतनी खोज हो, तो राम-राम क्या, कुछ भी जपो-मिल जायेगा। ऐसी प्रगाढ़ आकाक्षा हो। फिर तो रामानंद भी इनकार न कर सके कि ऐसा प्यारा आदमी।
इस तरकीब से दीक्षा ली। कहा कि फूंक दिया कान। ब्रह्ममुहुर्त में कह दिया: राम-राम। अब और क्या चाहिए। अब कभी न आऊंगा अब कभी न समाऊंगा आपको परेशान न करूंगा। लेकिन आपका हो गया।
रामानंद जिससे डरे थे शिष्य बनाने में, उसके दर्शन के लिए पंद्रह सौ ब्राह्मण…। सच्चे ब्राह्मण रहे होंगे। वही तो कबीर में उत्सुक हो सकते हैं। वे एकत्रित हुए। कबीर को उन्होंने निंमत्रित किया कि आप आंए और धर्म हमें समझाए।
कबीर आए। वहां पंद्रह सौ पुरूषों को देखा और लौट गए। बड़े हैरान हुए ब्रह्मण। उन्होंने कहा:आप लौट क्यों जा रहे हैं। बात क्या हैं?
जो कबीर को सुनने आ गए थे- कबीर जुलाहे को- उनकी भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि स्त्री को बुलाएं। स्त्री की हालात शूद्र से बदतर रही।
इसलिए तो तुलसीदास ने उसको शूद्रों में गिना है। शूद्र, ढोल, पशु,नारी-ये सब ताडऩ के अधिकारी। तुलसीदास से ज्यादा खतरनाक और बीमार आदमी इस देश में दूसरा नहीं हुआ। और जब तक इस देश को तुलसीदास से छूटकारा नहीं होता, तब तक बड़ी अड़चन हैं।
तो मीरा की खबर तो कई लोगों को थी। मीरा पास ही थी, उसकी सुंगध भी आती थी। लेकिन स्त्री के पास पुरूष जाए। पुरूष तो परमात्मा है,और तो ताडऩ की अधिकारी है। स्त्री को पुरूष सम्मान दे। शूद्र को भी दे दे एक बार, चलो, आखिर पुरूष है न शूद्र। पुरूष तो है। मीरा में तो झंझटे हो गयीं। स्त्री भी है। यह तो कठिन बात थी।
कबीर आकर खड़े हुए और उन्होंने कहा:जब तक मीरा न आएगी,तब तक मैं नहीं आऊंगा। मजबूरी में मीरा को निमंत्रित करना पड़ा। और जब मीरा आयी और नाची, तब कबीर आए। उन्होंने कहा: मीरा के नाच से सब शुद्ध हो गया। अब यहां सच में ही ब्राह्मणत्व की ज्योति जल रही है। अब न कोई शूद्र है,न कोई स्त्री है। अब भेद गिरे।
जहां भेद गिर जाते हैं, वहां ब्रह्म का अनुभव है। अभेद- ब्रह्म का अनुभव है। तो जो सच्चे ब्रह्मण थे, वे तो बुद्ध के साथ हो लिये। वे सदा से रहे बुद्ध के साथ,महावीर के साथ,कबीर के साथ,नानक, मोहम्मद,जीसस-दुनिया में जहां भी कभी कोई लोग हुए हैं,जिन्होंने जाना है- असली ब्राह्मण सदा उसके साथ हो गए। नकली ब्राह्मण सदा उसके विपरीत हो गए हैं।
नकली की भीड़ है। नकली का समूह है। इन नकलियों ने मिलकर बुद्ध के धर्म को इस देश से उखाड़ दिया। इस देश की सबसे बड़ी संपदा इन नकलियों ने भ्रष्ट कर दी। इस देश का सबसे बड़ा मानव इन नकलियों ने पराया कर दिया।
आज सारा एशिया बुद्ध का गुणगान करता है- एक सिर्फ उनके इस देश को छोडक़र। यह अभागा देश बुद्ध के गुणगान से भरा हुआ नहीं है।
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Jeewan Aadhar Editor Desk