हिसार

कर्म किए जा फल की इच्छा मत करना इंसान: स्वामी सदानंद

आदमपुर (अग्रवाल)
कर्म किए जा फल की इच्छा मत करना इंसान, जैसे कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान, ये है गीता का ज्ञान, ये है सतगुरु का ज्ञान। इंसान जैसे कर्म करता है तो उसको वैसा ही फल मिलता है। ये बात गीता में लिखी गई है और सतगुरु का भी यही ज्ञान है। यह बात बोगा मंडी स्थित श्रीकृष्ण प्रणामी सत्संग भवन में श्री कृष्ण प्रणामी सेवा समिति द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथा में उपस्थित श्रद्धालुओं को धर्मलाभ देते हुए प्रणामी मिशन के प्रमुख स्वामी सदानंद महाराज ने कहीं।

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स्वामी ने कहा कि भागवत सुनने से इंसान का सीधा संबध भगवान से बनता है। भक्त और भगवान के बीच गहरा संबंध होता है। मनुष्य को जीवन मे हमेशा अच्छे कर्म करना चाहिए। कलियुग में वह व्यक्ति सफल हो सकता है जिसे भागवत सुनने का सुअवसर प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि भगवान सच्ची श्रद्धा के भूखे होते है, जो कोई उन्हें मन से पुकारता है, प्रभु उसकी प्रार्थना हमेशा सुनते है। बिना हरि कृपा के भागवत श्रवण सुख प्राप्ति संभव नहीं है। भक्त ध्रुव और प्रह्लाद प्रसंग पर बोलते हुए स्वामी ने कहा कि ध्रुव केवल 5 वर्ष की उम्र में ही भगवान से मिलकर अमर हो गए। भक्त ध्रुव ने कठोर तपस्या की, ध्रुव के पिता और जगत ने ध्रुव और उसकी माता सुनीती को ठुकरा दिया। तब चारों ओर से हताश और निराश होकर छह महीने तक ध्रुव ने कठोर साधना की। ध्रुव की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे राजा ही नहीं बनाया बल्कि प्रत्युत मरने के बाद मोक्ष भी प्रदान किया।

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प्रह्लाद भक्त का प्रसंग सुनाते हुए स्वामी ने कहा कि भक्त प्रह्लाद को उसके पिता हिरण्यकिश्यप ने सर्पों से डसवाया, समुद्र में डाला, पर्वत से नीचे गिराया, अग्रि में जलाया, जेल में एक महीने तक बंद रखा व उसे अन्न-पानी तक नहीं दिया। भक्त प्रह्लाद के पिता ने उसका वध करने के लिए अनेक प्रकार के जतन किए, किंतु सांस-सांस में भगवान का जाप करने वाले प्रह्लाद का कोई भी बाल भी बांका नहीं कर सका। उन्होंने बताया दुख का सबसे बड़ा कारण मोह होता है। जब किसी चीज पर हमारा मन लग जाता है, मन की इच्छाओं का अंत कभी नहीं होता है। उन्होंने कहा कि राम से बड़ा राम का नाम है, राम से ज्यादा उसके नाम में शक्ति है। नाम ही है जो भक्त को भगवान से जोड़ता है।
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