फ्रेडरिक नीत्से ने लिखा है कि लोग सत्य चाहते ही नहीं। लिखा है उसने कि जब भी मैंने लोगों से सत्य कहा, लोगों ने गालियां दीं। और जब भी मैंने असत्य कहा, लोग बड़े प्रसन्न हुए, मुस्कुराए और धन्यवाद दिया। लोग सत्य चाहते ही नहीं। सत्य लोगों को देना ही मत, अन्यथा वे तुम्हें कभी क्षमा न करेंगे।
बात सच मालूम होती है, नहीं तो जीसस को सूली पर क्यों लटकाया? लोग क्षमा नहीं कर सके। सुकरात को जहर क्यों दिया? लोग क्षमा नहीं कर सके। लोग सत्य चाहते नहीं।
सुकरात पर जुर्म क्या था? अदालत में मुकदमा चला। जुर्म क्या था? जुर्मों की लंबी फेहरिस्त थी, उसमें सबसे महत्वपूर्ण जुर्म जो था, नंबर एक का जुर्म जो था, वह यह था कि सुकरात जबर्दस्ती लोगों को समझाता है कि सत्य क्या है। कोई आदमी अपने काम से निकला है, रास्ते पर मिल जाता है, सुकरात उसका हाथ पकड़ लेता है और ऐसे प्रश्न उठाने लगता है जो कि वह आदमी कहता है, अभी मुझे उठाने नहीं हैं। अभी मैं दूसरे काम से जा रहा हूं। अभी मैं बाजार जा रहा हूं। अभी नौकरी करनी है। अभी धंधा करना है। सुकरात ने लोगों को इस तरह परेशान कर दिया। रास्तों पर पकड़—पकड़ कर। चलते आदमी सुकरात को देख कर, कहते हैं गलियों से भाग निकलते थे। आसपास के दरवाजों में से घुस जाते थे दूसरों के मकानों में, कि सुकरात कहीं कोई बात न छेड़ दे। क्योंकि उसकी हर बात तीखी है।
अदालत ने सुकरात से कहा था— हम तुम्हें क्षमा कर सकते हैं अगर तुम सत्य का उपदेश देना बंद कर दो। तुम बच सकते हो। तुम्हारा जीवन बच सकता है। लेकिन तुम यह सत्य की बात बंद कर दो। जब लोग चाहते ही नहीं हैं तो तुम क्यों ये बातें करते हो? अगर तुम विश्वास दिला दो अदालत को कि अब तुम चुप रहोगे और सत्य की बात नहीं बोलोगे तो तुम्हारा जीवन बच सकता है, अन्यथा मृत्यु सुनिश्चित है।
सुकरात हंसा और उसने कहा— फिर मैं जी कर ही क्या करूंगा? सत्य आए जगत में, यही तो मेरे जीवन का प्रयोजन है। सत्य ही तो मेरा धंधा है। जिऊंगा तो सत्य का काम जारी रहेगा। इसलिए वह वचन मैं नहीं दे सकता हूं।
तुमने कभी वर्तमान के बुद्धों को क्षमा नहीं किया है। हां, जब बुद्ध जा चुके होते हैं तब उनकी किताब पर तुम फूल चढ़ाते हो। सुविधापूर्ण है। किताब तुम्हें जगा नहीं सकती। सच तो यह है, किताब का अच्छा तकिया बन जाता है, उस पर तुम गहरी नींद सोते हो।
सदगुरू का तुम तकिया नहीं बना सकते। सदगुरू आग है। अंगारों से तकिए नहीं बनते। अंगारें जलाती हैं, बुरी तरह जलाती हैं! लेकिन उसी जलने में ही तो तुम्हारा निखार छिपा है। उसी मृत्यु से तो तुम्हारा पुर्नजीवन है।
नीत्से ठीक कहता है कि लोग सत्य नहीं चाहते। नीत्से ने यह भी कहा है कि लोगों को अगर सत्य मिल जाए तो वे उसे जल्दी ही झूठ कर लेते हैं। वह भी ठीक है। उसको लीप— पोत लेते हैं। उसको इधर—उधर से काट—छांट लेते हैं। उसके कोने मार देते हैं। उसको गोलाई दे देते हैं। उसको इस तरह की शब्दावली में, इस तरह के सिद्धांत—जाल में रच देते हैं कि उसकी प्रखरता चली जाती है, उसकी चोट चली जाती है। फिर वह घाव नहीं बना पाता। फिर वह मलहम हो जाता है। छुरी, जो तुम्हारे प्राणों को छेद देती, भाला जो तुम्हारे प्राणों के आर—पार उतर जाता— —वह मलहम बन जाता है। लोग उसको घोंट—पीस कर मलहम बना लेते हैं— — भाले की मलहम बना लेते है। लोग झूठ चाहते हैं। झूठ बड़ा प्यारा है।
तुम झूठ में ही जीते हो। कोई तुमसे कह देता है कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूं और तुम प्रफुल्लित हो जाते हो। और तुमने कभी यह सोचा ही नहीं कि तुम में प्रेम करने योग्य है क्या, जो कोई तुम्हें प्रेम करेगा! तुम्हें अगर कोई याद दिलाए कि तुम में प्रेम करने योग्य कुछ है ही नहीं, भाई मेरे तुम्हें कोई प्रेम करेगा कैसे? तो तुम नाराज हो जाओगे। उसने तुम्हारी सत्य छू दी। उसने तुम्हारा दर्द छेड़ दिया। उसने तुम्हारा सत्य छू दिया। उसने तुम्हारी रग छू दिया। तुम मलहमपट्टी चाहते हो। तुम चाहते हो लोग कहे : तुम बड़े प्यारे हो, बड़े भले हो! और तुम जानते हो कि ऐसे तुम नहीं हो। जानते हो, इसलिए इसको छिपाना चाहते हो। तुम उन्हीं लोगों का आदर करते हो, जो तुम्हारे मन को किसी न किसी रूप में सांत्वना दिए चले जाते है?