खेत—खलिहान

कृषि मंत्रालय किसानों को इस मशीन पर दे रहा है 50 से 80 फीसदी रियायत—जानें विस्तृत रिपोर्ट

नई दिल्ली,
कृषि उपज से निकलने वाली पराली को जलाने से दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में हर साल सर्दी में होने वाले धुंआ जनित वायु प्रदूषण के संकट से बचाने की सरकार ने तैयारी कर ली है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की पराली प्रबंधन योजना के तहत पराली को जलाने की बजाय खेत की मिट्टी में ही इसे मिलाने की तकनीक से धुंआ जनित प्रदूषण का समाधान खोजा गया है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कृषि मंत्रालय के सहयोग से इस तकनीक को किसानों तक पहुंचाने का काम शुरु कर दिया गया है।

किसानों को मिलेगी 50 से 80 फीसदी रियायत
इसके तहत मंत्रालय द्वारा दिल्ली और पड़ोसी राज्यों के किसानों को पराली के छोटे-छोटे टुकड़े करने वाली मशीन 50 से 80 फीसदी तक की रियायती दरों पर उपलब्ध करा कर इसके संचालन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय की निगरानी में जारी इस योजना के कार्यान्वयन से जुड़े कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव जलज श्रीवास्तव ने बताया कि इन मशीनों के उपयोग से पराली जलाने की घटनाओं पर अंकुश लगेगा, जिससे प्रदूषण में काफी कमी आना तय है।

किसान समूहों को मिलेगा अधिक फायदा
श्रीवास्तव ने बताया कि पराली प्रबंधन योजना के तहत पराली की कतरन बनाने वाली मशीन किसानों को दो प्रकार से मुहैया करायी जा रही है। निजी उपयोग के लिए किसान द्वारा इस मशीन को खरीदने पर 50 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है। बाकी रकम सरकारी अनुदान से किसान दे सकेगा। वहीं किसान अगर समूह बना कर यह मशीन खरीदते हैं तो उन्हें 80 फीसदी का अनुदान मिलेगा और सिर्फ 20 फीसदी राशि का उन्हें मिलकर भुगतान करना होगा।

कृषि मंत्रालय ने जारी की अनुदान राशि
इस योजना के तहत किसानों को ये मशीन मुहैया कराने के लिए दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को अनुदान राशि जारी कर दी गई है। इसमें पंजाब को लगभग 269 करोड़, हरियाणा को 138 करोड़, उत्तर प्रदेश को 149 करोड़ और दिल्ली को 5 करोड़ रुपए जारी किए जा चुके हैं। योजना के तहत जागरुकता अभियान के माध्यम से किसानों को पराली जलाने की बजाय इसे मिट्टी में मिलाने के फायदों से भी अवगत कराया जा रहा है। मशीन से छोटे टुकड़ों में बंटी पराली खेत की मिट्टी में मिलकर प्राकृतिक खाद का काम करेगी।

पंजाब में सर्वाधिक जलाया जाता है फसल अवशेष
उल्लेखनीय है कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में सर्वाधिक, 85 फीसदी फसल अवशेष को किसान अपने खेतों में ही जला देते हैं। जबकि, हरियाणा में 40 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 29 फीसदी फसल अवशेष जला दिए जाते हैं। इसका दुष्प्रभाव दिल्ली और आसपास के इलाकों में धुंआ जनित प्रदूषण के रूप में दिखता है। पराली जनित प्रदूषण से जुड़ी मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार एक हेक्टेयर खेत में पराली जलाने से खेत के पोषक तत्व नाईट्रोजन का 5.5 किलोग्राम, सल्फर का 1.2 किलोग्राम, पोटाश का 2.3 किलोग्राम और आर्गेनिक कार्बन का 400 किलोग्राम का नुकसान होता है।

पराली मिट्टी में मिलाने से बढ़ेगी उर्वरक क्षमता
एक अनुमान के मुताबिक पंजाब में 36.60 लाख हेक्टेयर, हरियाणा में 15.81 लाख हेक्टेयर, उत्तर प्रदेश में 11.80 लाख हेक्टेयर और दिल्ली में लगभग 50 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि पर पराली जलायी जाती है। रिपोर्ट के अनुसार यदि पराली को खेतों में मिला दिया जाए, तो एक हेक्टेयर जमीन में नाईट्रोजन की मात्रा 20 से 30 किलोग्राम, पोटाश की मात्रा 60 से 100 किलोग्राम, सल्फर की मात्रा चार से सात किलोग्राम और आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 1600 किलोग्राम तक बढ़ सकती है।

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