हिसार

रोडवेज मामला : बातचीत को लेकर सरकार ने केवल खानापूर्ति की: कमेटी

हिसार,
720 प्राइवेट बसों को किलोमीटर स्कीम के तहत चलाने के सरकार के फैसले के खिलाफ रोडवेज की 18 दिनों तक चली हड़ताल माननीय उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद समाप्त हुई। माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान करते हुए रोडवेज तालमेल कमेटी ने हड़ताल वापस ली थी। किलोमीटर स्कीम के तहत निजी बसों को टेंडर देने के फैसले को वापस लेने का अधिकार क्षेत्र केवल मुख्यमंत्री के स्तर का है परन्तु 12 नवंबर को तालमेल कमेटी व विभागीय अधिकारियों के बीच हुई मीटिंग से प्रतीत होता है कि सरकार द्वारा इस मसले को गम्भीरता से न लेकर मात्र खानापूर्ति की गई।

यह बात आज रोडवेज कर्मचारी यूनियनों के प्रधान राजपाल नैन, कुलदीप मलिक, राम सिंह बिश्नोई, अरुण शर्मा, बहादुर सण्डवा, रमेश माल व पवन बूरा ने एक संयुक्त बयान जारी कर कही। उन्होंने कहा कि हरियाणा रोडवेज की बसों को हरियाणा की जीवन रेखा के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कहा कि सरकार हर हाल में प्राइवेट बसों को चलाना चाहती है। यही कारण है कि सरकार 4.72 किलोमीटर प्रति लीटर डीजल की खपत देने वाली रोडवेज की बसों को बन्द करके 3.00 किलोमीटर प्रति लीटर डीजल की खपत देने वाली बसों को लाकर निजी बसों के मालिकों के पक्ष में खड़ी कर्मचारी नेताओं ने कहा कि रोडवेज की एक बस खरीदने पर पांच पढ़े लिखे नवयुवकों को स्थाई रूप से रोजगार मिलता है जो पांच लोगों को रोजगार देने के बाद भी लगभग 47 रूपये खर्चा आता है। इसके विपरीत सरकार जो किलोमीटर स्कीम के तहत निजी बसों को चलाने का प्रयास कर रही है उन पर जो 37 व 39 रुपये खर्च दर्शाया गया है वह वास्तव में लगभग 54-55 रुपये खर्चा आएगा। उन्होंने बताया कि इस समय रोडवेज के विभिन्न डिपुओ में जवाहरलाल नेहरु योजना के तहत खरीदी गई बसें,सीएनजी बसें, वोल्वो आदि बसें, जिनकी संख्या एक हजार से ज्यादा हैं, खड़ी खराब हो रही है।

सरकार ने अपने चार साल के कार्यकाल के दौरान इन बसों को चलाने का प्रयास क्यों नहीं किया। उन्होंने कहा कि इस तरह के कई सवाल है जिसका सरकार व अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि सरकार द्वारा जिन 720 बसों को एक साल के दौरान न्यूनतम किलोमीटर तय करने की एवज में जो राशि उन बस मालिकों को दी जाएगी उस राशि से करीब 1200 सरकारी बसें खरीदी जा सकती है जो आठ साल तक चलेंगी। आठ साल बाद भी जब ये बसें कण्डम होगी तो उनकी नीलामी राशि भी करोड़ों की होगी।

राजपाल नैन ने कहा कि निजीकरण किसी समस्या का कोई समाधान नहीं है। उन्होंने कहा कि ये निजी बसें न तो विभाग हित में है और ना ही प्रदेश की जनता को इससे कोई फायदा होने वाला है। उन्होंने कहा कि 14 नवंबर को माननीय उच्च न्यायालय में इस मसले पर सुनवाई होनी है। माननीय उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ताओं के माध्यम यूनियनें अपना पक्ष रखेंगी। तालमेल कमेटी ने उम्मीद जताई है कि लगातार 18 दिनों तक हरियाणा प्रदेश की लाईफ लाईन को बचाने के लिए लड़ी गई लड़ाई में रोडवेज कर्मचारियों के साथ साथ प्रदेश की जनता को भी न्याय मिलेगा।

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