हिसार,
राज्यकवि उदयभानु हंस का लंबी बिमारी ने चलते मंगलवार रात करीब 9 बजे निधन हो गया। वे करीब 93 साल के थे। बुधवार को उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ सेक्टर 16/17 शमशानघाट में दोपहर 1 बजे किया जायेगा। उनके निधन के समाचार से शहर में शोक की लहर फैल गई। उनके प्रशंसकों का उनके निवास स्थान पर तांता लग गया।
उदयभानु हंस हिंदी में ‘रुबाई’ के प्रवर्तक कवि हैं जो ‘रुबाई सम्राट’ के रूप में लोकप्रिय हैं। 1926 में पैदा हुए उदयभानु हंस की ‘हिंदी रुबाइयां’ 1952 में प्रकाशित हुई थी, जो नि:संदेह हिंदी में एक ‘नया’ और निराला प्रयोग था। उन्होंने हिंदी साहित्य को अपने गीतों, दोहों, कविताओं व ग़ज़लों से समृद्ध किया था। प्रसिद्ध गीतकार ‘नीरज’ तो हंस को मूल रूप से गीतकार मानते थे, वे कहते थे, “नि:संदेह हंस की रुबाइयाँ हिंदी साहित्य में बेजोड़ कही जा सकती हैं, लेकिन उनकी अभिव्यक्ति का प्रमुख क्षेत्र गीत ही है।”
सुप्रसिद्ध कवि हरिवंशराय बच्चन ‘हंस’ जी को को हिंदी कविता की एक विशेष प्रवृति का पोषक मानते थे।
यह ‘हंस’ जी की क़लम ही है, जो माटी के दर्द को भी वाणी दे सकती है:
“कौन अब सुनाएगा, दर्द हमको माटी का,
‘प्रेमचंद’ गूंगा है, लापता ‘निराला’ है।”
उदयभानु हंस के जीवन पर एक नजर
हंस ने मीडिल तक उर्दू-फारसी पढ़ी और घर में अपने पिताजी से हिंदी और संस्कृत पढ़ाते थे। उनके पिताजी हिंदी और संस्कृत के विद्वान थे और कवि भी थे। बाद में प्रभाकर और शास्त्री करके हिंदी में एमए किया। हंस ने सनातन धर्म संस्कृत कॉलेज, मुलतान और रामजस कॉलेज, दिल्ली में शिक्षा प्राप्त की।
साहित्यिक उपलब्धियां
संस्कृत-लेखन के लिए साप्ताहिक ‘संस्कृतम्’ अयोध्या से ‘कवि भूषणम्’ तथा ‘साहित्यालंकार’ की दो उपलब्धियों ( 1943 – 44 )
हरियाणा सरकार द्वारा सर्वप्रथम ‘राज्यकवि’ का सम्मान ( 1967)
गुरु गोबिन्द सिंह पर आधारित महाकाव्य ‘सन्त सिपाही’ पर उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा ‘निराला पुरस्कार’ ( 1968)
हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रम में जीवन परिचय सहित रचनाएं निर्धारित।
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह द्वारा दिल्ली में ‘गीत गंगा’ सम्मान ( 1992)
हिमाचल प्रदेश की प्रमुख संस्था ‘हिमोत्कर्ष’ द्वारा अखिल भारतीय ‘श्रेष्ठ साहित्यकार’ का सम्मान ( 1994)
हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयोग द्वारा इलाहाबाद में ‘विद्यावाचस्पति’ की मानद उपाधि (1994)
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा महर्षि विश्वविद्यालय, रोहतक द्वारा कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर दो शोध-छात्रों को पी-एचडी की उपाधियां ( 2001)
राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी के लिए छह शोधप्रबंध स्वीकृत, जिनमें महाकाव्य ‘संत सिपाही’ एक आधार ग्रन्थ।
1981 और 1993 में दो बार इंग्लैड एवं अमेरिका की यात्रा। प्रथम यूरोप हिन्दी महासम्मेलन में कवि रूप में आमंत्रित ।
‘दूरदर्शन ‘ के दिल्ली एवं जालंधर केन्द्रों द्वारा 30-30 मिनट के दो ‘वृत्तचित्रों’ का निर्माण एवं प्रसारण ।
हिंदी में ‘रुबाई’ के प्रवर्तक कवि ( 1948) ‘रुबाई सम्राट’ नाम से लोकप्रिय।